सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
पंडित चंद्रशेखर आज़ाद (अंग्रेज़ी: Pt. Chandrashekhar Azad, जन्म- 23 जुलाई, 1906; मृत्यु- 27 फ़रवरी, 1931) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। 17 वर्ष के चंद्रशेखर आज़ाद क्रांतिकारी दल ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ में सम्मिलित हो गए। दल में उनका नाम ‘क्विक सिल्वर’ (पारा) तय पाया गया। पार्टी की ओर से धन एकत्र करने के लिए जितने भी कार्य हुए, चंद्रशेखर उन सबमें आगे रहे। सांडर्स वध, सेण्ट्रल असेम्बली में भगत सिंह द्वारा बम फेंकना, वाइसराय को ट्रेन बम से उड़ाने की चेष्टा, सबके नेता वही थे। इससे पूर्व उन्होंने प्रसिद्ध ‘काकोरी कांड’ में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए। एक बार दल के लिये धन प्राप्त करने के उद्देश्य से वे गाजीपुर के एक महंत के शिष्य भी बने। इरादा था कि महंत के मरने के बाद मरु की सारी संपत्ति दल को दे देंगे।
चन्द्रशेखर आज़ाद घूम–घूमकर क्रान्ति प्रयासों को गति देने में लगे हुए थे। आख़िर वह दिन भी आ गया, जब किसी मुखबिर ने पुलिस को यह सूचना दी कि चन्द्रशेखर आज़ाद 'अल्फ़्रेड पार्क' में अपने एक साथी के साथ बैठे हुए हैं। वह 27 फ़रवरी, 1931 का दिन था। चन्द्रशेखर आज़ाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ बैठकर विचार–विमर्श कर रहे थे। मुखबिर की सूचना पर पुलिस अधीक्षक 'नाटबाबर' ने आज़ाद को इलाहाबाद के अल्फ़्रेड पार्क में घेर लिया। "तुम कौन हो" कहने के साथ ही उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना नाटबाबर ने अपनी गोली आज़ाद पर छोड़ दी। नाटबाबर की गोली चन्द्रशेखर आज़ाद की जाँघ में जा लगी। आज़ाद ने घिसटकर एक जामुन के वृक्ष की ओट लेकर अपनी गोली दूसरे वृक्ष की ओट में छिपे हुए नाटबाबर के ऊपर दाग़ दी। आज़ाद का निशाना सही लगा और उनकी गोली ने नाटबाबर की कलाई तोड़ दी। एक घनी झाड़ी के पीछे सी.आई.डी. इंस्पेक्टर विश्वेश्वर सिंह छिपा हुआ था, उसने स्वयं को सुरक्षित समझकर आज़ाद को एक गाली दे दी। गाली को सुनकर आज़ाद को क्रोध आया। जिस दिशा से गाली की आवाज़ आई थी, उस दिशा में आज़ाद ने अपनी गोली छोड़ दी। निशाना इतना सही लगा कि आज़ाद की गोली ने विश्वेश्वरसिंह का जबड़ा तोड़ दिया।
बहुत देर तक आज़ाद ने जमकर अकेले ही मुक़ाबला किया। उन्होंने अपने साथी सुखदेवराज को पहले ही भगा दिया था। आख़िर पुलिस की कई गोलियाँ आज़ाद के शरीर में समा गईं। उनके माउज़र में केवल एक आख़िरी गोली बची थी। उन्होंने सोचा कि यदि मैं यह गोली भी चला दूँगा तो जीवित गिरफ्तार होने का भय है। अपनी कनपटी से माउज़र की नली लगाकर उन्होंने आख़िरी गोली स्वयं पर ही चला दी। गोली घातक सिद्ध हुई और उनका प्राणांत हो गया। इस घटना में चंद्रशेखर आज़ाद की मृत्यु हो गई और उन्हें पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया। उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उन्हें तीन या चार गोलियाँ लगी थीं।
आज अमर बलिदानी तथा महान स्वतंत्रता सेनानी पंडित चंद्रशेखर आजाद जी के 88वें बलिदान दिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं। सादर।।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार हर्ष जी |
वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आड़ को विनम्र श्रद्धांजलि ! आभार !
जवाब देंहटाएं