हाथ छुड़ा कर,
कभी भी एकाकी,
निर्जन जीवन पथ
पार मत करना ।
ठाकुरजी की उंगली
कस के पकड़े रहना ।
ठोकर लगी भी
तो गिरोगे नहीं ।
जो कनिष्ठा पर
गोवर्धन धारण करते हैं,
पर समर्पित भाव
को डूबने नही देते ।
वो तर्जनी पर
सुदर्शन चक्र भी
धारण करते हैं,
सौवीं ग़लती पर
क्षमा नहीं करते ।
इन्हीं उंगलियों पर बाँसुरी
धारण करते हैं,
जपते हैं,
राधा नाम अविराम ।
जितनी मधुर उनकी मुस्कान,
बजाते हैं मुरली
उतनी ही सुरीली,
मिसरी-सी मीठी,
मानो लोरी ।
और प्रसन्न वदन जब
हौले से हँस कर,
नतमस्तक शीश पर
रखते हैं हस्त कमल,
सकल द्वंद, भव फंद,
हो जाते हैं दूर ।
इसलिए वत्स,
कभी मत छोड़ना,
कस कर
उंगली पकड़े रहना ।
पीले फूलों पर सर्दियों की गुनगुनी धूप जैसे पसर जाए और अलसाए... धीमे-धीमे खुमारी छा जाए और सहसा कोई हिला कर जगाए....ठीक वैसी अनुभूति हुई आपके ठिठकने पर....आती रहिएगा रश्मि प्रभा जी । सहर्ष स्वागत है । आभार करें स्वीकार ।
जवाब देंहटाएंआँगन की खुशबू चिड़िया को खींच ही लेती है
हटाएंअद्भूत! क्या खूब लिखा है। प्रेरणा भी स्वयं ठाकुर ही तो हैं। the most versatile!
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जोशीजी और अनमोल सा ।
जवाब देंहटाएंआभार राष्मीजी ।
किसी की पंक्तियां पढ़ी थीं कभी...
लंबी सड़क हो
सधे हुए कदम हों
और क्या चाहिए ?
समय के साथ जाना ..
मंज़िल तो किसी और ने तय की है,
मुझको तो अपना रास्ता बनाना है ।
नमस्ते ।
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार रचना
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