नमस्कार
साथियो,
सर्वोच्च
न्यायालय के धारा 377 पर दिए गए निर्णय के बाद समलैंगिक
सम्बन्ध अपराध की श्रेणी में नहीं आयेंगे. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली
पांच सदस्यीय संविधान ने धारा-377 की वैधता को चुनौती वाली याचिकाओं पर अपना फैसला
सुरक्षित रखते हुए यह साफ किया था कि इस कानून को पूरी तरह से निरस्त नहीं किया जाएगा.
यह दो समलैंगिक वयस्कों द्वारा सहमति से बनाए गए यौन संबंध तक ही सीमित रहेगा. पीठ
ने कहा था प्राकृतिक और स्वाभाविक क्या है? क्या बच्चा पैदा करने
के लिए ही यौन संबंध बनाना प्राकृतिक है? क्या वैसे यौन संबंध जिनसे बच्चा पैदा नहीं
होता वह प्राकृतिक नहीं है?
धारा
377 का पहली बार मुद्दा गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन ने उठाया था. इस संगठन
ने 2001 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी और अदालत ने समान लिंग के
दो वयस्कों के बीच यौन संबंधों को अपराध घोषित करने वाले प्रावधान को गैरकानूनी
बताया था. बाद में उच्चतम न्यायालय ने 11 दिसंबर 2013 को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले
को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध माना था. इसी फैसले को लेकर नवतेज सिंह जौहर,
सुनील मेहरा, अमन नाथ, रितू
डालमिया और आयशा कपूर आदि ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर उच्चतम न्यायालय
से समलैंगिकों के संबंध बनाने पर धारा 377 सम्बन्धी अपने फैसले पर विचार करने की मांग
की थी. उनका कहना है कि इसकी वजह से समलैंगिक डर कर जी रहे हैं और ये उनके अधिकारों
का हनन है.
इस
आदेश के बाद सामाजिकता की स्थिति क्या होगी? विवाह संस्था की स्वीकार्यता का क्या
होगा? दो बालिगों के मध्य यौन सम्बन्धी रिश्तों का आधार क्या बनेगा? ऐसे और भी
प्रश्न हैं जो लगातार सिर उठाते रहेंगे. इनके जवाब भी हम सबको खोजने होंगे क्योंकि
अदालत अपना निर्णय सुना चुकी है, समलैंगिक अपनी आज़ादी प्राप्त कर चुके हैं. इन
सबके बीच हम सब आज की बुलेटिन की तरफ बढ़ेंगे, साथ
में हमारी स्व-रचित एक काव्य-रचना का पाठ भी करेंगे.
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महकते उपवन में नये निजाम मिलेंगे।
कली कली से, भौंरे भौंरों
पर मँडराते मिलेंगे।।
चोरी-चोरी जो प्यार के गीत गाते थे,
आँखों-आँखों में ही बस गुनगुनाते थे।
खुल्लम खुल्ला होगी अब इजहारे-मुहब्बत,
प्रेम-प्यार की नित नई इबारत लिखेंगे॥
बाप बेटियों के सोयें चादर तान के,
आयाम देखो उनकी स्वच्छन्द उड़ान के।
क्यों घबराते हो उनके रिश्तों को लेकर,
नहीं इससे उनके पैर भारी मिलेंगे॥
शर्म की बात करते हो नादान हो,
होगा क्या सोच कर क्यों परेशान हो?
बेलौस होकर मदमस्त रहेंगे जोड़े,
कूड़े के ढेर पर नहीं नवजात मिलेंगे॥
अभी तक पड़े थे हाशिये पर जो,
करते हैं याद उन वेद-पुराणों को,
बात कुछ हजम नहीं होती मेरे यार,
पॉप कल्चर वाले क्या वेद-पुराण पढ़ेंगे॥
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बहुत सुन्दर समसामायिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसमसामायिक बुलेटिन, राजा साहब |
जवाब देंहटाएंसुन्दर सुरुचिपूर्ण संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद
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