Pages

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

वयस्क होता बचपन और ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो, 
बच्चियों से साथ लगातार होते आ रहे दुराचार के बीच एक खबर पढ़ने को मिली कि कानपुर में चार नाबालिगों ने चार साल की एक बच्ची के साथ सामूहिक दुराचार किया. इन चारों में से एक की उम्र बारह वर्ष जबकि अन्य तीन की उम्र छह वर्ष से दस वर्ष के बीच है. उन चारों को गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने बताया कि एक पोर्न फिल्म देखने के बाद उसी का कृत्य उस बच्ची पर आजमाया. बच्चे सुधार गृह में भेज दिए गए हैं, ऐसी खबर है.


वैसे देखा जाये तो ये कोई पहली घटना नहीं है जिसमें इतनी छोटी उम्र में ऐसी हरकतें करना रहा हो. सोशल मीडिया पर आये दिन ऐसे फोटो, वीडियो सामने आते हैं जिनमें छोटी उम्र के बच्चे अपने गुप्तांग एक-दूसरे को दिखाते पकड़े गए हैं. ऐसी भी खबरें मिली हैं जिनमें लड़के-लड़कियाँ आपस में मम्मी-पापा का खेल खेलते पाए गए. इस खेल में उनके द्वारा सेक्स क्रिया करते भी देखा गया है. यह सब अकस्मात नहीं होता है. इसके पीछे पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक और शारीरिक तंत्र काम करता है. हमारे समाज में सेक्स का सन्दर्भ आज भी दो वयस्कों द्वारा शारीरिक सम्बन्ध बनाये जाने से है. इक्कीसवीं सदी में भी यौन शिक्षा का अर्थ शारीरिक सम्बन्ध के बारे में समझाए जाने से लगाया जाता है. इस तरह की संकुचित मानसिकता के चलते ही सेक्स को लेकर बहुत गलत, भ्रामक धारणाएँ समाज में फैली हुई हैं. यदि गौर करें तो सेक्स सम्बन्धी हरकतें बच्चों द्वारा बहुत छोटी वय से करनी शुरू हो जाती हैं. विषमलिंगी बच्चे आपस में एक-दूसरे के गुप्तांगों को लेकर अचंभित होते हैं. लड़के-लड़कियों के गुप्तांगों में अंतर होने के कारण उनके लिए यह कौतूहल की स्थिति होती है. उस कम उम्र में उनके लिए यह अंतर सेक्स का पर्याय नहीं होता वरन आश्चर्य का विषय होता है.

इसके अलावा परिवारों में बच्चों को उनके क्लास में पढ़ने वाले लड़के/लड़कियों के नाम पर चिढ़ाया जाता है. उनके बॉयफ्रेंड का, गर्ल फ्रेंड का नाम पूछा जाता है. और तो और उनकी शादी तक की बात करके उन्हें चिढ़ाया जाता है. इसके अलावा कुछ माता-पिता अपने छोटे बच्चों के सामने रोमांटिक मूड में बने रहते हैं. अक्सर बेपरवाह होकर बेपर्दा भी हो जाते हैं. बच्चे मासूमियत में भले होते हैं मगर ऐसे कृत्य के बारे में जानना चाहते हैं. उनके लिए यह इसलिए भी गलत नहीं होता क्योंकि उनके मम्मी-पापा ऐसा कर रहे होते हैं. ऐसे में बच्चों द्वारा इस तरह का कृत्य सेक्स के स्थान पर अपनी जिज्ञासा का शमन करने जैसा होता है.

एक बात और, आज जिस पोर्न साइट्स का, इंटरनेट के दुरुपयोग का हम सब रोना रो रहे हैं, उसके बारे में भी सोचिये. आज हर हाथ में मोबाइल है, हर हाथ में इंटरनेट है इसी कारण हर हाथ में पोर्न है. बच्चों के माता-पिता जिस गोपन को पलंग के एक छोर पर संचालित करते हैं, बच्चे उसी गोपन का ज्ञान अपने मोबाइल के माध्यम से करने लगते हैं. बस वे इसके प्रयोग के इंतजार में रहते हैं. जैसे ही वे इसे पाते हैं किसी न किसी रूप में उसका निदान कर लेते हैं. हाथ में पकड़े मोबाइल से लेकर बेडरूम में सजे टीवी तक किसी न किसी रूप में आज के बच्चे सिर्फ और सिर्फ सेक्स देख रहे हैं, अश्लीलता देख रहे हैं. ऐसे में उन्हें समझाना कठिन है कि यह उनकी उम्र के लिए नहीं है.

आइये, बस आधुनिकता का यह तमाशा देखें क्योंकि हम सब भौतिकतावादी दौड़ में सबकुछ भुलाकर लगे हुए हैं. चलिए, अभी तो आज की बुलेटिन देखें और सोचें कि बचपन में वयस्कता का स्वाद चखते बच्चों को कैसे बस बचपन का आनंद लेने दें.

++++++++++















6 टिप्‍पणियां:

  1. विचारणीय बुलेटिन प्रस्तुति
    बुलेटिन में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु बहुत-बहुत आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. very soothing presentation and composition of the page.
    सेंगर जी आपका हार्दिक आभार बुलेटिन का हिस्सा बनाने के लिए .
    समय से पहले बचपन विदा होते देख कर मन बहुत छटपटाता है . बचपन की मासूम स्मृतियाँ जब-जब दस्तक देती हैं सारी उदासी काफ़ूर हो जाती है. इस पीढ़ी के पास यह आधार नहीं होगा तो क्या होगा ? क्या हम भी ज़िम्मेदार नहीं इसके लिए किसी हद तक ?

    जवाब देंहटाएं
  3. कुमारेन्द्र जी, स्थिति हाथ से निकल चुकी लगती है ! धन-पिपासु बाजार ने बच्चों को शिशु से किशोर बनने ही नहीं दिया सीधा जवान बना दिया है ! कोई माने ना माने दोष तथाकथित आधुनिक माँ-बाप का भी है जो आँख बंद कर फैशन की होड़ में बच्चों सहित शामिल हैं !

    जवाब देंहटाएं
  4. @noopuram.....
    अपने आप को आधुनिक दिखाने की होड़ के फूहड़ प्रयास में अभिभावक भी बड़ी हद तक दोषी हैं जो बच्चों की अनुचित मांगों को भी बिना सोचे समझे पूरा करने को आतुर रहते हैं। अभी पिछले दिनों पिक्चर हॉल में परिवार के साथ आई एक कन्या की सात-आठ इंच की हाफ "पैंटी" लोगों की नज़रों को रोक नहीं पा रही थी। अधिकाँश घरों में तो उतना छोटा वस्त्र सात-आठ की उम्र के बाद शायद ही बच्चों को पहनाया जाता हो और इधर सरे आम भीड़-भाड़ वाले माहौल में उसे पहन-पहना कर कोई क्या सिद्ध करना चाहता हैं, पता नहीं ! पिक्चरों पर तो फिर भी सेंसर है, पर टीवी, मोबाइल जो जहर परोस रहे हैं उसका क्या ??

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!