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शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

गुबार देखते रहे ...



कहाँ से हम चलते हैं कहाँ के लिए, और मिट्टी का तन मिट्टी में मिल जाता है - फिर सिर्फ गुबार !
याद है मुझे अपना वो बचपन, जब मैं स्कूल में कवि नीरज बनी थी और पढ़ा था, कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब, ज़िन्दगी वेद थी, पर ज़िल्द बंधाने में कटी ...
अम्मा ने पत्र लिखकर कवि नीरज को बताया था, उन्होंने अपने आशीर्वाद के साथ अपना फ़ोटो भेजा था 🙏 ।मिलें न मिलें, एक गर्व मिल जाता है, शब्दों का रिश्ता बन जाता है । 
एक दिन शब्द चूक जाते हैं या व्यक्ति, कुछ तो हो जाता है और साँसें थम जाती हैं । थम गईं साँसें उस कवि की, जिनका रूप लेकर मैं मंच पर उतरी थी । 
कफ़न बढ़ा तो किसलिए नज़र तू डबडबा गई,
श्रृंगार क्यूँ सहम गया, बहार क्यूँ लजा गई,
न जन्म कुछ,न मृत्यु कुछ,बस इतनी सिर्फ बात है 
किसी की आँख खुल गई, किसी को नींद आ गई ।


Devendra Kumar Pandey


तेरा कारवां बड़ा लंबा था
हम भी शरीक हुए,
हमारे पिताजी भी 
और ..
हमारे बच्चे भी।
मजे की बात यह
कि तेरा कारवां अभी ख़तम नहीं हुआ
चलता रहेगा
यूं ही
तेरी यादों के सहारे
दीप जलाते वक्त
लब से फूटेंगे बोल..
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए!
राह चलते वक्त
कहेगा दिमाग
ए भाई! जरा देख के चलो...!!!
आज तू
मरा नहीं है नीरज
जमाने को
तेरेअमर होने की
पहचान मिली है।
... विनम्र श्रद्धांजलि।

Harkirat Heer


कवि गोपालदास नीरज का निधन हो गया है। वो पिछले कई दिनों से बीमार चल रहे थे। बुधवार की शाम को तबियत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें आगरा से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां उन्हें ट्रामा सेंटर के आईसीयू में भर्ती कराया गया था। 93 साल के महाकवि नीरज आगरा के बल्केश्वर में रहने वाली बेटी कुंदनिका शर्मा के घर आए थे। यहां मंगलवार को सुबह के नाश्ते के बाद तबीयत बिगड़ गई थी।
उन्हें सांस लेने में दिक्कत हुई। इसके बाद उन्हें दीवानी कचहरी के पास स्थित लोटस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। यहां उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था। मगर फेफड़ों में संक्रमण से बढ़ती तकलीफ ज्यादा बढ़ने से उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी और अंततः वे हम सब से विदा ले गए ....
नीरज जी ने अपनी काव्य रचनाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उन्हें भावनाओं और अनुभूतियों को व्यक्त करने में दक्षता हासिल थी। उनकी काव्य पुस्तकों में दर्द दिया है, आसावरी, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, नीरज की पाती, नीरज दोहावली, गीत-अगीत, कारवां गुजर गया, पुष्प पारिजात के, काव्यांजलि, नीरज संचयन, नीरज के संग-कविता के सात रंग, बादर बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नदी किनारे, लहर पुकारे, प्राण-गीत, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये, वंशीवट सूना है और नीरज की गीतिकाएँ शामिल हैं। गोपाल दास नीरज ने कई प्रसिद्ध फ़िल्मों के गीतों की रचना भी की है। नीरज ने कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे’, ‘ए भाई जरा देख कर चलो’, ‘कहता है जोकर सारा ज़माना’ जैसे यादगार गीतों की रचना की ।
नीरज मूलतः एक कवि थे , जिन्होंने फिल्मों के लिए भी कई यादगार गीत लिखे हैं। कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के बाद नीरज को मुंबई से फिल्म ‘नई उमर की नई फसल’ के गीत लिखने का बुलावा आया, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फिल्म में संगीतकार रोशन के साथ उनके लिखे कुछ गाने जैसे ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे’, और ‘देखती ही रहो आज दर्पण न तुम’, ‘प्यार का यह मुहूर्त निकल जायेगा’ बेहद लोकप्रिय हुए। उसके बाद नीरज का फ़िल्मों में गीत लिखने का सिलसिला शुरू हो गया जो ‘मेरा नाम जोकर’, ‘शर्मीली’ और ‘प्रेम पुजारी’ जैसी अनेक चर्चित फिल्मों तक जारी रहा। नीरज को फिल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये 70 के दशक में लगातार तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार मिल चुका है। जिन गीतों पर उन्हें यह पुरस्कार मिला वो हैं- ‘काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चन्दा और बिजली-1970), ‘ बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं (फ़िल्म: पहचान-1971) और ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’ (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर-1972)। 'प्रेम पुजारी' में देवानंद पर फिल्माया उनका गीत 'शोखियों में घोला जाए ..' भी उनके एक लोकप्रिय गीतों में शामिल है जो आज भी सुने जाते हैं।
उनके निधन से हिंदी साहित्य और फिल्मी जगत में शोक की लहर दौड़ गई है. बड़े-बड़े साहित्याकार, फिल्मी दुनिया और कई राजनेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है.
नीरज को उनके गीतों के लिए भारत सरकार ने 'पद्मश्री' और 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया था. उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी अनेक गीत लिखे और उनके लिखे गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं. हिंदी मंचों के प्रसिद्ध कवि नीरज को उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया था.
इस महान हस्ती को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि ....😢😢

बहुत याद आयेंगे नीरज .......🙏💐
ऐसे गीत गन्धर्व जिसने भाषा की चाँदनी बिखेरी धरा पर यक्ष की भांति विचरण किया .....
जीवन कटना था, कट गया
अच्छा कटा, बुरा कटा
यह तुम जानो
मैं तो यह समझता हूँ
कपड़ा पुराना एक फटना था, फट गया
जीवन कटना था कट गया।
रीता है क्या कुछ
बीता है क्या कुछ
यह हिसाब तुम करो
मैं तो यह कहता हूँ
परदा भरम का जो हटना था, हट गया
जीवन कटना था कट गया।
क्या होगा चुकने के बाद
बूँद-बूँद रिसने के बाद
यह चिंता तुम करो
मैं तो यह कहता हूँ
कर्जा जो मिटटी का पटना था, पट गया
जीवन कटना था कट गया।
बँधा हूँ कि खुला हूँ
मैला हूँ कि धुला हूँ
यह विचार तुम करो
मैं तो यह सुनता हूँ
घट-घट का अंतर जो घटना था, घट गया
जीवन कटना था कट गया।


श्रद्धांजलि
19 नवम्बर 2017 मे दिए गए नई दुनिया अखबार मैं दिए गए नीरज जी के साक्षात्कार का अंश-
*साहित्य को सत्ता के संरक्षण की जरूरत आप किस हद तक महसूस करते है ?
★★साहित्य को सत्ता की कोई जरूरत नही है।
सत्ता को साहित्य की जरूरत है।साहित्य सत्ता का मार्गदर्शन करता है।सत्ता साहित्य की नही।साहित्य सत्ता को सही रास्ते पर लाने का कार्य करता है।
💐💐💐💐💐
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गयी तो क्या है
खुद ही हल हो गयी समस्या
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या
रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी
जैसे रात उतार चांदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

4 टिप्‍पणियां:

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