बात पुत्र की हो या पुत्री की, माँ अधिक निकट होती है, जीवन के गूढ़ पहलुओं की पहचान वही देती है । लेकिन, पुत्र के साथ अक्सर यह बात आड़े आती रही है, कि वह तो घी का लड्डू है,टेढ़ा भी भला ! उसके साथ व्यवहार में एक अलग दृष्टिकोण हो जाता है, जो थोड़ा-बहुत हर जगह देखने को मिल ही जाता है ।
बेटे के उच्च्श्रृंखल स्वभाव को पूरा घर गर्व से लेता है, माँ की सोच धीरे धीरे नगण्य हो जाती है, उसका रोकना,टोकना घर के अन्य बड़े लोग ही काट देते हैं । वक़्त की पाबंदी पुत्र के साथ कम देखने को मिलती है, कुछ अपवाद छोड़कर, हर जगह यही सुनने को मिलता है, कि बेटा है, इतनी रोक सही नहीं !
रोक,टोक कभी अच्छी नहीं लगती, कम उम्र के नज़रिए से देखा जाए तो किसी के लिए सही नहीं, लेकिन यही बांधना,रोकना बच्चे को देवदार बनाता है और देवदार एक माँ का ही कमाल होता है । देवदार भी तभी समझ पाता है, जब उसे देखकर लोग ठिठकते हैं, रश्क करते हैं ।
कई माँ भी पुत्र को लेकर अलग ख्याल रखती हैं, कोई सीख नहीं देतीं, वक़्त की पाबंदी नहीं सिखलाती तो बाहर के हुजूम में वह क्या सीख रहा, उसका परिणाम बाद में ही देखने को मिलता है !
माँ की निकटता बच्चे के जीवन में बहुत मायने रखती है, क्योंकि उसकी भाषा माँ से बेहतर कोई नहीं समझता ।
अग्निशिखा :: स्वप्न मंजरी - -
नए ज़माने की नयी इबारतों के बीच | प्रतिभा की दुनिया ...
"मेरा मन": सिसक सिसक कर रातें रोई
साहित्य प्रदूषण
मसि कागद छुयो नही
मसि कागद छुयो नही, लेखनी गहि न हाथ
ग्रन्थों के लाकार्पण कैसे हो रहे नाथ
कैसे हो रहे नाथ, ठगे स ेलेखक देखें
पुरस्कारों की श्रेणी में सब आप सरीखे
आप सहिष्णुता की है वह अनमोल कसौटी
खरी खरी भुुनभुना भुना ली- मुद्रा खोटी
पद की उंचायी से पद महिमा के निसृत
पद से ही यह पद भी होते हैं वयाखयाचित
हैं दबंग/दबदवा और की ऐसी तैसी
आप महान लेखक छुयो नहीं कागद मसि
मसि कागद छुयो नही
मसि कागद छुयो नही, लेखनी गहि न हाथ
ग्रन्थों के लाकार्पण कैसे हो रहे नाथ
कैसे हो रहे नाथ, ठगे स ेलेखक देखें
पुरस्कारों की श्रेणी में सब आप सरीखे
आप सहिष्णुता की है वह अनमोल कसौटी
खरी खरी भुुनभुना भुना ली- मुद्रा खोटी
पद की उंचायी से पद महिमा के निसृत
पद से ही यह पद भी होते हैं वयाखयाचित
हैं दबंग/दबदवा और की ऐसी तैसी
आप महान लेखक छुयो नहीं कागद मसि
गंगा जमुना सरस्वती की स्वयं त्रिवेणी
इनके अलग आलोचक इनकी अलग है श्रेणी
चाटुकारिता के प्रभाग के स्वयं प्रभारी
आदान प्रदान सिलसिला कब से जारी
यह साहित्य में हाय कैसा चलन चला है
मौलिकता प्रतिभा का दीवाला निकाला है
इनके अलग आलोचक इनकी अलग है श्रेणी
चाटुकारिता के प्रभाग के स्वयं प्रभारी
आदान प्रदान सिलसिला कब से जारी
यह साहित्य में हाय कैसा चलन चला है
मौलिकता प्रतिभा का दीवाला निकाला है
यह....साहित्य प्रदूषण का है चक्र अनूठा
इनका सत्य सत्यापित, शेष कथ्य सब झूठा
हुए पुरस्कृत एक भी पद न लिख पाये ढंग का
अलग कठौती में है इनकी अलग ही गंगा
इनका सत्य सत्यापित, शेष कथ्य सब झूठा
हुए पुरस्कृत एक भी पद न लिख पाये ढंग का
अलग कठौती में है इनकी अलग ही गंगा
कविता कामिनी अब करे, मुजरा बीच बाजार
मनांेरंजन ही कर्म अब मनोरंजन व्यापार
मनोरंजन व्यापार हाव भाव मुद्राएं
भुना भुनभुनारही सब काव्य विधाएं
हास और परिहास गाढकर खूंटा किल्ली
भुना भुनभुनारही udaatee sab ki khillleee
मनांेरंजन ही कर्म अब मनोरंजन व्यापार
मनोरंजन व्यापार हाव भाव मुद्राएं
भुना भुनभुनारही सब काव्य विधाएं
हास और परिहास गाढकर खूंटा किल्ली
भुना भुनभुनारही udaatee sab ki khillleee
अटहास अब क्रूर कुटिल मुद्राएं फेंके
दो कौडी के लोग दूर की कौडी फेंके
प्रावधान हो कोई हो कोई दंड संहिता
बलात्कार से त्रस्त हो रही- कामिनी कविता
दो कौडी के लोग दूर की कौडी फेंके
प्रावधान हो कोई हो कोई दंड संहिता
बलात्कार से त्रस्त हो रही- कामिनी कविता
उपमा की उडी धज्जियां अलंकार अब खेल
मौलिकता प्रतिभा गई , दोनों लेने तेल
धूलि धूसरित हुर्द काव्य गौरव की गरिमा
प्रमुख नहीं अब भाव प्रमुख है भाव भंगिमा
मौलिकता प्रतिभा गई , दोनों लेने तेल
धूलि धूसरित हुर्द काव्य गौरव की गरिमा
प्रमुख नहीं अब भाव प्रमुख है भाव भंगिमा
वर्जित दृश्यों के नित नूतन नये संस्करण
नग्नता की अब अलग ही संज्ञा, अलग व्याकरण
इनके प्रच र प्रकार प्रसार का अब अलग ही प्रचलन
तथ्यों पर बुद्धि पर परदे का है फैशन
नग्नता की अब अलग ही संज्ञा, अलग व्याकरण
इनके प्रच र प्रकार प्रसार का अब अलग ही प्रचलन
तथ्यों पर बुद्धि पर परदे का है फैशन
अब नगण्य सी हुई यहां पर अमिधा लक्षणा
व्यंजना व्यजन मात्र -यहां है केवल उपमा
व्यंजना व्यजन मात्र -यहां है केवल उपमा
कविता का था स्वर्णकाल, वह कनक छरी सी
अंलकार से, आभूषण से लदी फदी सी
नैन तिरिछे नैन नचाय जब मुस्कराती
गूढ ग्रन्थों की स्याही सी फीकी पड जाती
अंलकार से, आभूषण से लदी फदी सी
नैन तिरिछे नैन नचाय जब मुस्कराती
गूढ ग्रन्थों की स्याही सी फीकी पड जाती
नहीं अपेक्षित थे प्रकांड पंडित या सााक्षर
प्रेम पोथी के पर्याप्त थे-ढाई आखर
जीवन से खिलवाड -जब प्रमुख खेल नहीं था
शब्दों से खिलवाड यमक या श्लेष वहीं था
प्रेम पोथी के पर्याप्त थे-ढाई आखर
जीवन से खिलवाड -जब प्रमुख खेल नहीं था
शब्दों से खिलवाड यमक या श्लेष वहीं था
अंकगणित का शून्य -लिये ललाट -छवि का
कनकछरी सी स्वर्णमयि थी, कामिनी कविता
कनकछरी सी स्वर्णमयि थी, कामिनी कविता
साधुवाद के साधु भी अब नहीं वह साधक
उनके कर्तब देख भाग खडे होते अराधक
मुनियों के संग और आ गये मुन्नी मुनिया
भांग चरस की स्थापित अब एक ही दुनिया
उनके कर्तब देख भाग खडे होते अराधक
मुनियों के संग और आ गये मुन्नी मुनिया
भांग चरस की स्थापित अब एक ही दुनिया
अधकचरी यह पडी तुकें-कुछ आधी छोडी
ज्यों कोई पिया की प्रिया,कोई मियां की तोडी
गीतों के मुखडों को रह रह कर तोड मरोडें
ज्यों पटखनी देकर किसी को मुखडा तोडें
ज्यों कोई पिया की प्रिया,कोई मियां की तोडी
गीतों के मुखडों को रह रह कर तोड मरोडें
ज्यों पटखनी देकर किसी को मुखडा तोडें
पगबेडियां बांधु या पैजानियां बांधु
सात समद की भसि फीकी पड रही बता दूं
साधुवाद में मात्र शेष ह ैअब तो साधु
साधुवाद में मात्र शेष ह ैअब तो साधु
ले लेकर तुलसी कबीर की यह पदावली
उलट फेर शब्दों में, पद में करें धांधली
शल्य क्रिया में पारंगत सर्जन द्वयार्थी
प्ररिूप बदला, कविता की शक्ल बदल दी
सिद्धि प्रतिभां भी जिनसे कर चुकी पलायन
भेष बदल अब धूमें तथाकथित नारायण
उलट फेर शब्दों में, पद में करें धांधली
शल्य क्रिया में पारंगत सर्जन द्वयार्थी
प्ररिूप बदला, कविता की शक्ल बदल दी
सिद्धि प्रतिभां भी जिनसे कर चुकी पलायन
भेष बदल अब धूमें तथाकथित नारायण
शब्द शब्द की खाल खींच...मुस्स भरें निगोडे
यत्र तत्र दैडे-बेलगाम यह धोडे-
यह दिग्भ्रमित मोढो इन्हें दिशा, दे देकर
श्रोंतो हाथों में -इनकी लगाम ले लेकर
........
अनुष्ठान हो, शुद्धीकरण हो शब्द मंजे हो
गूढार्थ किवां साधारण...स्वतः सधे हो
चिंतन पगे साधना से सिद्धि के शिखर पर
ऐसा हो संसर्ग कि खर भी हो जाय प्रखर
यत्र तत्र दैडे-बेलगाम यह धोडे-
यह दिग्भ्रमित मोढो इन्हें दिशा, दे देकर
श्रोंतो हाथों में -इनकी लगाम ले लेकर
........
अनुष्ठान हो, शुद्धीकरण हो शब्द मंजे हो
गूढार्थ किवां साधारण...स्वतः सधे हो
चिंतन पगे साधना से सिद्धि के शिखर पर
ऐसा हो संसर्ग कि खर भी हो जाय प्रखर
सिद्धि - साधना के शब्द अनमोल हों माणिक
तपें मंजे निखरे -गूढार्थ के संवाहक
तपें मंजे निखरे -गूढार्थ के संवाहक
शब्द मांजने वाली बाई बैठे बाचे जाचे
भांडों के टोकरे खोखले से कुछ खांचे
नई यति गति नई लय नई तुक हो तान हो
कविता कामिनी का भी शुद्धिकरण हो अनुष्ठान हो े
भांडों के टोकरे खोखले से कुछ खांचे
नई यति गति नई लय नई तुक हो तान हो
कविता कामिनी का भी शुद्धिकरण हो अनुष्ठान हो े
मेरे लिए तो सभी वार एक जैसे ही है
चाहे सोमवार हो मंगलवार या शनिवार
अमूमन पूरा दिन घर पर ही हूँ
न दफ्तर जाने की समयबद्धता है
न वापस लौटने की आकुलता
न इस झोले में कोई छुट्टी वाला इतवार है
कि जिस दिन फुरसतों की बारिश हो!!
चाहे सोमवार हो मंगलवार या शनिवार
अमूमन पूरा दिन घर पर ही हूँ
न दफ्तर जाने की समयबद्धता है
न वापस लौटने की आकुलता
न इस झोले में कोई छुट्टी वाला इतवार है
कि जिस दिन फुरसतों की बारिश हो!!
फिर भी तुम्हारे संग मुझे भी इंतज़ार रहता है
तुम्हारे फुरसत वाले इतवार का!!
कि जिस दिन तुम दिन भर आँखो के सामने रहोगे
अलसायी सुबह
बेपरवाह दोपहर
और ख़्वाहिशों वाली शाम होगी!!
तुम्हारे फुरसत वाले इतवार का!!
कि जिस दिन तुम दिन भर आँखो के सामने रहोगे
अलसायी सुबह
बेपरवाह दोपहर
और ख़्वाहिशों वाली शाम होगी!!
उस दिन जूते बिलकुल न पहनना तुम
घर में चप्पल चटकारते आवारा उड़ा करना
दुनियादारी की उधेड़बुन से बाहर निकल
हसरतों से टोहना !
घर में चप्पल चटकारते आवारा उड़ा करना
दुनियादारी की उधेड़बुन से बाहर निकल
हसरतों से टोहना !
बाकी दिनों की भागादौड़ी में
हमारे दरमियां जमी बर्फ
तुम्हारी आवारगी से उस दिन
पिधलेगी!!
हमारे दरमियां जमी बर्फ
तुम्हारी आवारगी से उस दिन
पिधलेगी!!
दिन खाली खाली बीतेगा
पर हमारे खालीपन को भर देगा!!
पर हमारे खालीपन को भर देगा!!
माना कि बाकी वार परेशानियों का शोर है
मगर सुकूनभरा इतवार भी तो है
माना कुछ दिन गर्दिश के हैं
मगर इतवारियों की गोद भी तो है!!
मगर सुकूनभरा इतवार भी तो है
माना कुछ दिन गर्दिश के हैं
मगर इतवारियों की गोद भी तो है!!
गोया जिन्दगी की ख़लिश को
इन इतवारों से भर देना है
कि मुझे फिर जिद करना है
बच्ची बनना है
दो पल ठहर जाना है
कि ये इतवार ठहरने वाले नही!!
बीत जाने वाले हैं
बीतते जाने वाले हैं
इतवार भी
और इनमें गुथे चैन और सुकूँ भी!
देखो खाली हाथ
लौट न जाये
ये इतवारों सिली उम्मीदें
मुस्कुराहटें!
कि मुझे एक अदद मेरे वाले इतवार की दरकार है तुमसे!!
इन इतवारों से भर देना है
कि मुझे फिर जिद करना है
बच्ची बनना है
दो पल ठहर जाना है
कि ये इतवार ठहरने वाले नही!!
बीत जाने वाले हैं
बीतते जाने वाले हैं
इतवार भी
और इनमें गुथे चैन और सुकूँ भी!
देखो खाली हाथ
लौट न जाये
ये इतवारों सिली उम्मीदें
मुस्कुराहटें!
कि मुझे एक अदद मेरे वाले इतवार की दरकार है तुमसे!!
बहुत सुन्दर और प्रभावी संकलन...आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुलेटिन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बुलेटिन
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
सादर नमन
Mother swcrifices hv no other sentiments in ones life
जवाब देंहटाएंमाँ का साथ मजबूत व मर्यादित व्यक्तित्व बनाने में सहायक होता है.
जवाब देंहटाएंसही बात...
अच्छे लिंक्स का आभार !
Lajawab sanklan...
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