सभी ब्लॉगर मित्रों को सादर नमस्कार।
गुरु अंगद देव (अंग्रेज़ी: Guru Angad Dev, जन्म- 31 मार्च, 1504 ; मृत्यु- 28 मार्च, 1552) सिक्खों के दूसरे गुरु थे। वे गुरु नानक के बाद सिक्खों के दूसरे गुरु थे। इस पद पर वे 7 सितम्बर, 1539 से 28 मार्च, 1552 तक रहे। गुरु अंगद देव महाराज जी का सृजनात्मक व्यक्तित्व था। उनमें ऐसी अध्यात्मिक क्रियाशीलता थी, जिससे पहले वे एक सच्चे सिख और फिर एक महान् गुरु बनें। गुरु अंगद देव 'लहिणा जी' भी कहलाते हैं। ये पंजाबी लिपि गुरुमुखी के जन्मदाता हैं, जिसमें सिक्खों की पवित्र पुस्तक आदिग्रंथ के कई हिस्से लिखे गए। ईश्वरीय गुणों से भरपूर महान् और प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे गुरु अंगद देव।
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर .... अभिनन्दन।।
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आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर .... अभिनन्दन।।
गुरु अंगद देव की जयंती पर उनकी पुण्य स्मृति को सादर नमन ! विविधरंगी सूत्रों से सजा है आजका बुलेटिन..आभार मुझे भी इसमें स्थान देने के लिए.
जवाब देंहटाएंसुन्दर बुलेटिन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहर्ष जी, आपको और ब्लॉग बुलेटिन को हार्दिक धन्यवाद
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