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मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

काकोरी कांड के वीर बांकुरों को नमन - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
काकोरी कांड तो आप सभी लोगों को याद होगा ही. जी हाँ, सही सोचा आपने. आज की तिथि में काकोरी कांड नहीं हुआ था. उसे तो हमारे वीर-बांकुरों ने 09 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अंजाम दिया था. इस घटना से जुड़े 43 क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला और जैसा कि अंग्रेजी शासन में होता था, वही हुआ. अशफाक उल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को मृत्युदण्ड की सज़ा सुनाई गई. इन क्रांतिकारियों के लिए फांसी का दिन आज, 19 दिसम्बर निर्धारित कर दिया गया. इसके बाद भी जैसा कि होता रहा, अंग्रेज़ी सरकार ने डर के मारे राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को गोण्डा कारागार भेजकर दो दिन पूर्व ही 17 दिसम्बर 1927 को फांसी दे दी. वीर राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी ने हंसते-हंसते फांसी का फन्दा चूमते हुए जयघोष किया कि मैं मर नहीं रहा हूँ, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूँ.

इसके दो दिन बाद यानि कि 19 दिसम्बर 1927 को अंग्रेजी शासन ने शेष तीनों क्रांतिकारियों अशफाक उल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह को फांसी की सजा दे दी. अंग्रेजी सरकार में इन क्रांतिकारियों का भय इतनी बुरी तरह व्याप्त था कि तीनों वीरों को अलग-अलग जेलों में अलग-अलग स्थानों पर फांसी की सजा दी गई. अशफाक उल्ला को फ़ैजाबाद जेल में, रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में और ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद की मलाका जेल में फांसी दी गई.

19 दिसम्बर 1927 को अशफ़ाक़ उल्ला हमेशा की तरह सुबह उठे. नित्यकार्यों से निवृत होकर उन्होंने कुछ देर वज्रासन में बैठ कुरान की आयतों को दोहराया और किताब बन्द करके उसे आँखों से लगाया. इसके बाद वे अपने आप जाकर फाँसी के तख्ते पर खडे हो गए और बोले कि मेरे ये हाथ इन्सानी खून से नहीं रँगे. खुदा के यहाँ मेरा इन्साफ होगा. इतना कहकर अपने आप ही फांसी का फंदा अपने गले में डाल कर वे इस दुनिया को अलविदा कह गए.
 
अमर शहीद अशफाक उल्ला 
फांसी की सजा के निर्धारित दिन रामप्रसाद बिस्मिल रोज की तरह सुबह चार बजे उठे. नित्यकर्म संपन्न करने के बाद उन्होंने अपनी माँ को पत्र लिखा और फिर नियत समय पर वन्देमातरम और भारत माता की जय का उद्घोष कर वे मनोयोग से निम्न पंक्तियाँ गाते हुए फांसी के तख्ते के पास पहुँचे-
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे।
बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे।।
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे।
तेरा ही ज़िक्र या तेरी ही जुस्तजू रहे।।
फांसी का फंदा चूमने के पहले उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की कि I Wish the downfall of British Empire अर्थात मैं ब्रिटिश साम्राज्य का नाश चाहता हूँ.

अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल 
 इसी तरह ठाकुर रोशन सिंह ने फांसी के तख़्त की ओर जाने से पहले अपनी काल कोठरी को प्रणाम किया और गीता हाथ में लेकर निर्विकार भाव से चल दिए. उन्होंने फ़ाँसी के फंदे को चूम कर जोर से तीन बार वंदेमातरम् का उद्घोष किया और वेद मन्त्रों का जाप करते हुए हमेशा-हमेशा को अमर हो गए.

अमर शहीद ठाकुर रोशन सिंह 
 देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की परवाह न करने वाले ऐसे वीर शहीदों, अशफाक उल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल और ठाकुर रोशन सिंह को बुलेटिन परिवार की तरफ से सादर श्रद्धांजलि, नमन.

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3 टिप्‍पणियां:

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