सुषमा वर्मा की कलम से ,
मेरा परिचय तब तक अधूरा है जब तक मै अपने माता पिता का जिक् ना कर लूँ आज मै जो कुछ भी हूँ इनके ही त्याग और कठिन संघर्ष के कारण ही हूँ इनके ही दिये आर्शीवाद और दिये संस्कारो से ही आज मैने अपनी पहचान बनायी है..!!!!...........
रंग तितलियों में भर सकती हूँ मैं...... फूलो से खुशबू भी चुरा सकती हूँ मैं.... यूँ ही कुछ लिखते-लिखते इतिहास भी रच सकती हूँ मैं......!!!
एहसासों के यज्ञ में इनकी 'आहुति' काफी मायने रखती हैं। उम्र दर उम्र की सोच की करवटें मन के तारों को झंकृत कर जाती हैं।
चलो इक बार फिर,
तुम मुझे कॉफी पर बुलाओ,
और हमेशा की ना करते हुए हाँ कर दूँ....
तुम्हारा कॉफी पर बुलाना,
इक बहाना था,
गुजरे पलो को दोहराना होता है...
तुम वही शर्ट पहन कर आओ,
जिसे कभी मैंने कहा था,
कि तुम पर अच्छी लगती है...
मैं वही रंग पहन कर आऊं,
जो तुमको बहुत पसंद था..
हम इस तरह इक-दूसरे को,
देख कर मुस्करा दिए,कि
याद तो अभी भी हमें सब कुछ है....
ना जाने क्यों तुम्हारे साथ जब भी होती हूँ,
सालो बाद भी कैपिचीनो कॉफ़ी का,
स्वाद वही होता है...
वही मिठास तुम्हारी बातो की लगती है,
और थोड़ी सख्त तुम्हारे अंदाज़ जैसी होती है...
पर इक बात मुझे आज तक,
समझ नही आई...
वैसे फोन पर तो तुमसे बहुत बाते करती हूँ,
पर जब तुम सामने होते हो,
जाने क्यों कुछ सूझता ही नही..
जैसे ही नजरो से नजरे मिल जाती,
धड़कने बढ़ जाती और,
मैं सब कुछ भूल जाती हूँ...
और तुम मुझे चिढ़ाते हुऐ कहते हो,
अब बताओ तुम्हे कितनी बाते करनी है.....
मैं सिर्फ मुस्करा कर रह जाती हूँ,
कैसे कहूँ तुम्हारा मेरे सामने होना ही,
सारी बातों का मतलब होता है....
सच कहूं तो ये कॉफी मुझे नही पसंद...
बस तुम्हारे साथ ही कॉफी पीती हूँ...
यही वो लम्हे है...
तुम्हारे साथ जिनसे मुझे प्यार हो गया...!!!
सुन्दर भाव ।
जवाब देंहटाएंThnk u
हटाएंइन्हें पढता रहा हूँ मैं!
जवाब देंहटाएंThnk u
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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