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बुधवार, 13 दिसंबर 2017

1956 - A Love story - १९०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन

साल १९५६. दो मशहूर थियेटर ग्रुप और कलकत्ता के प्रसिद्ध थियेटर में उनके नाटकों का मंचन. इत्तेफाक से दोनों ग्रुप को एक ही तारीख दे दी गई थी. लेकिन लोग प्रोफेशनल रहे होंगे, उन्होंने तारीखों को आगे पीछे कर लिया. ये सुलह आपसी मोहब्बत से हो गई. लेकिन इस सुलह के दरमियान, एक ग्रुप के हीरो को दूसरे ग्रुप की हिरोइन से मोहब्बत हो गई, वो भी बिलकुल सच्ची... पहले नज़र के प्यार वाली.

बात इतने पर ही थम जाती तो गनीमत थी. तब भी शायद वो बात सच थी कि अगर तुम किसी को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात तुम्हें उससे मिलाने की साज़िश में जुट जाती है. ये दोनों थियेटर ग्रुप एक दूसरे से पूरब पच्छिम थे, एक ठेठ हिन्दुस्तानी तो दूसरा विलायती अंग्रेजों का ग्रुप. अंग्रेजों के ग्रुप में एक अदाकार कम पड़ गया. नतीजा उन्होंने “जो सुलूक एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है” वाले अन्दाज़ में हिन्दुस्तानी ग्रुप से कहा कि मुझे एक अदाकार उधार दे दो. लेकिन मुसीबत इतने से टलने वाली नहीं थी, देसी मुर्गे के विलायती बोल ही नहीं फूट रहे थे. ऐसे में बिल्ली के भागों छींका फूट गया. विलायती थियेटर की हिरोइन, जो मालिक की बेटी थी, को यह काम दिया गया कि उधार के अदाकार की अंग्रेज़ी दुरुस्त करो.

शेक्सपियेर और बर्नार्ड शा की अंग्रेज़ी सिखाते-सिखाते दोनों में जो पहली नज़र का प्यार था, अब परवान चढा और उन्हें ऐसा लगने लगा कि वे बस एक दूजे के लिये ही बने हैं. अंगरेज़ मालिक को यह बर्दाश्त कहाँ होने वाला था कि साल १९५६ में भारत की आज़ादी के बाद भी एक हिन्दुस्तानी उसकी बेटी का हाथ थाम सके. वो शख्स था भी बहुत तुनकमिजाज. उत्पल दत्त जैसे कलाकार के भी वो गुरु रह चुके थे और वे बताते हैं कि अगर किसी बात पर उन्हें गुस्सा आ गया तो वो चप्पल उतारकर मार बैठते थे अपने कलाकार को.

बहुत सारी दुश्वारियाँ आई दोनों की ज़िंदगी में. मोहब्बत भी ज़बरदस्त इम्तिहान लेती है. थियेटर मालिक नहीं चाहता था कि वे दोनों थियेटर ग्रुप छोडकर जाएँ और दोनों शादी करें यह भी नहीं मंज़ूर था. नतीजा दोनों के लिये बड़ी मुश्किल पेश आई. आखिरकार वे दोनों ग्रुप छोडकर मलयेशिया एक नाटक में भाग लेने चले गए. लेकिन दो चाहने वालों का भगवान भी बड़ा और कड़ा इम्तिहान लेता है. शो रद्द हो गया और लौटने के पैसे खत्म. अंत में उस लडके ने अपने बड़े भाई से मदद माँगी. भाई ने टिकट भेजा और वे लौटकर हिन्दुस्तान आए.

दूसरे बड़े भाई को और भाभी को अपनी प्रेम कथा सुनाई और उनकी मदद रंग लाई. १९५८ में दोनों ने शादी कर ली और हनीमून के लिये कलकत्ता गए जहाँ से उनकी प्रेम कहानी शुरू हुई थी. एक होटल के रूम नंबर १७ में वे साथ-साथ रहे और आज भी वह कमरा उनके सम्मान में “द शशि कपूर रूम” के नाम से जाना जाता है. 

ये प्रेम कहानी जो जितनी फ़िल्मी लगती है उससे कहीं ज़्यादा सच्ची है. वे दो थियेटर ग्रुप थे पृथ्वी थियेटर्स और शेक्सपियेराना, जिसके मालिक थे जेफरी केंडल और वो हिरोइन थीं जेनिफर केंडल... इस कहानी के हीरो शशि कपूर की पहली और आख़िरी मोहब्बत. १९८४ में जेनिफर की मौत के बाद भी वो मोहब्बत की दास्तान खत्म नहीं हुई.
और मुझे तो ये लगता है कि ४ दिसंबर २०१७ को शशि कपूर साहब की मौत के बाद तो यह दास्तान-ए-मोहब्बत दुबारा लिखी जाएगी. 

मेरी ओर से १९०० वीं बुलेटिन के रूप में मेरे पसंदीदा कलाकार को यह मेरी श्रद्धांजलि है!

एक बेहतरीन इंसान, एक सच्चे कला पारखी और सबसे ऊपर एक सच्चा मोहब्बत करने वाला इंसान. परमात्मा उनकी आत्मा को शान्ति दे! 

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13 टिप्‍पणियां:

  1. शशि कपूर साहब को श्रद्धांजलि स्वरुप दी गयी मर्मस्पर्शी प्रस्तुति के साथ सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. बहुत सुन्दर श्रद्धांजलि दी है आपने शशि कपूर जी को, इतनी भावनात्मक पोस्ट में मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद

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  3. भावनात्मक पोस्ट....स्थान देने के लिए धन्यवाद :)

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  4. इससे अच्छी श्रद्धान्जलि और क्या हो सकती है? मुझे शामिल करने के लिये आभार आपका .

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  5. ब्लॉग बुलेटिन के 1900वें पड़ाव पर सलिल जी की एक लाजवाब प्रस्तुति ।

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  6. बुलेटिन लेखक की जगह मेरा नाम तो कहीं नहीं लिखा, फिर कैसे पता चला कि ये ये मेरी बुलेटिन है!! :)

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  7. हमेशा की तरह जबरदस्त बुलेटिन ... और लिंक्स

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  8. फिल्म जगत के मुट्ठी भर सज्जन, विवादहीन, लोकप्रिय लोगों में से एक, श्रद्धांजलि !

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  9. सभी पाठकों और पूरी बुलेटिन टीम को १९००वीं पोस्ट की हार्दिक बधाइयाँ |
    ऐसे ही स्नेह बनाए रखिए |



    सलिल दादा आपको प्रणाम |

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  10. शशि कपूर हमेशा याद आएंगे, आपने उन्हें अच्छे से याद किया, आपका लिखा रोचक लगा ।

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