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शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

2017 का अवलोकन 24



सच  ... कड़वा हो या मीठा, सच है क्या ?
वह जो बोल दिया गया या वह जिसमें कुछ कतरे हलक में रह गए, या वह जो दीवारों में चुन दिया गया, जो सुरंग से निकल गया किसी और देश में अजनबी की तरह !
क्या सच में सच लिखा होता है चेहरे पर ? 
और  ... वाकई जो पढ़ लिया गया, वह सच है !
मेरा मानना है कि सच एक लुप्त गंगा है, जब तक लौटती है, कितने मौसम, कितने अर्थ बदल जाते हैं !!!

स्वप्न मेरे ... दिगम्बर नासवा जी का ब्लॉग 

खोलते हैं आज इस पाण्डुलिपि को 



बिन बोले, बिन कहे भी कितना कुछ कहा जा सकता है ... पर जैसा कहा क्या दूसरा वैसा ही समझता है ... क्या सच के पीछे छुपा सच समझ आता है ... शायद हाँ, शायद ना ... या शायद समझ तो आता है पर समय निकल जाने के बाद ...   

एक टक हाथ देखने के बाद तुमने कहा 
राजा बनोगे या बिखारी

वजह पूछी
तो गहरी उदासी के साथ चुप हो गईं
और मैंने ...
मैंने देखा तुम्हारी आँखों में 
ओर जुट गया सपने बुनने

भूल गया की लकीरों की जगह
हाथों का कठोर होना ज्यादा ज़रुरी है
सपनों के संसार से परे
एक हकीकत की दुनिया भी होती है
जहाँ लकीरें नहीं पत्थर की खुरदरी ज़मीन होती है

जूते पहनने के काबिल होने तक
नंगे पाँव चलना ज़रूरी होता है
गुलाब की चाह काँटों से उलझे बिना परवान नहीं चढ़ती  

ये सच है की सपनों का राजकुमार
मैं कभी का बन गया था
आसान जो था
नज़रें बंद करके सोचना भर था
पर भिखारी बने बिना भी न रह सका
(तुम्हारी तलाश में ठोकरें जो खाता रहता हूं)

सच है ... हाथ की रेखाएं बोलती हैं  ...

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत आभार रश्मि दी आज मुझे भी मान दिया हाई आपने ... मन के भाव कहने का प्रयास करता हूँ बस ...

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  2. भूल गया की लकीरों की जगह
    हाथों का कठोर होना ज्यादा ज़रुरी है

    बहुत खूब !

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  3. बेहतरीन भाव।।।।। साल के जाते जाते कुछ कह ही गए मन की।

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  4. दिगम्बर जी का अपना अन्दाज है। बधाई।

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  5. आदरणीय दिगंबर नासवा जी की रचनाएँ बहुत सारी पढ़ी हैं। बहुत बहुत बधाई उन्हें ।

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  6. नासवा जी आपकी बहुत सारी रचनाएँ पढ़ी हैं | सत्य का चित्रं करती आपकी सभी रचनाएँ वास्तव में न केवल सराहनीय हैं बल्कि बहुत से लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत भी...

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  7. सपनों के संसार से परे
    एक हकीकत की दुनिया भी होती है
    जहाँ लकीरें नहीं पत्थर की खुरदरी ज़मीन होती है....शानदार जानदार अभिव्यक्ति !!

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