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गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

2017 का अवलोकन 23




सबकुछ कितना निरर्थक लगने लगा है 
कितने एकाकी हो गए हैं व्यस्त होकर हम 
माता-पिता ने पढ़ाया 
खूब नाम कमाओ 
हर ऊंचाई को पाओ 
ऊंचाई पर गए 
तो वे नीचे रह गए 
अब शिकायतों का समंदर है आगे 
... !!!

डॉ राजीव जोशी से मिलिए 

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फ़िज़ूल ग़ज़ल
**********

बच्चे घरों के' जब बड़े जवान हो गए
तब से बुजुर्ग अपने बेजुबान हो गए

कुदरत को छेड़ कर हमें यूँ क्या मिले भला
खुद ही तबाह होने का सामान हो गए

देखो सियासतों का रंग क्या गज़ब हुआ
जितने भी' थे' शैतान, वो शुल्तान हो गए

यूँ तो किसी भी हुक़्मराँ पे है यकीं नहीं
अच्छे दिनों की बात पे क़ुर्बान हो गए

कहते थे' दिखावा जिन्हें मेरी गली के लोग
मेरे उसूल ही मेरी पहचान बन गए

कुछ भी नहीं कहा है मगर देख भर लिया
खुद ही की' नज़र में वो पशेमान हो गए

जब से तुम्हारा साथ मुझे मिल गया सनम
ज़िन्दगी के रास्ते आसान हो गए।

12 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ.राजीव जी एकदम नए ब्लॉगर हैं...उच्च शिक्षित की कलम से प्रसवित ये रचना...हकीकत बयाँ करती है...फ़िजूल नहीं है ये...
    सादर

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    उत्तर
    1. इस मातृपूरित स्नेह के लिए हृदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ।
      यह सब आदरणीय सुशील सर के सद्प्रयासों से सम्भव हो पाया है।
      चिठा जगत के सभी विद्वतजनों का पुनः कोटि कोटि आभार।

      हटाएं
    2. इस मातृपूरित स्नेह के लिए हृदय तल से आभार व्यक्त करता हूँ।
      यह सब आदरणीय सुशील सर के सद्प्रयासों से सम्भव हो पाया है।
      चिठा जगत के सभी विद्वतजनों का पुनः कोटि कोटि आभार।

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  2. बहुत सुन्दर। अभी अभी शुरु किया गया ब्लॉग है । आपकी नजर में भी आ गया । क्या बात है । बधाई राजीव ।

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    1. प्रणाम सर
      यह सब आपके निर्देशन से ही सम्भव हुआ है।

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    2. प्रणाम सर
      यह सब आपके निर्देशन से ही सम्भव हुआ है।

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  3. भूल गया की लकीरों की जगह
    हाथों का कठोर होना ज्यादा ज़रुरी है

    सार्थक, बेहतरीन !

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  4. मेरे उसूल ही मेरी पहचान बन गए .... बेहद सशक्त लेखन ...

    जवाब देंहटाएं

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