लिखना मेरी आदत है
या तुमसे कुछ कहना
जान पाना थोड़ा मुश्किल है …
क्योंकि मैं तो आज भी लिखती हूँ
इधर-उधर पोस्ट भी करती हूँ
पढ़नेवाले पढ़ जाते हैं
लेकिन मैं संतुष्ट नहीं होती
मेरी तलाश तुम्हारी होती है …
आत्मा अमर है
तो तुम हो
दिल को बहलाने के लिए सही है बोलना
पर ....
वो जो अपनी चमकती आँखों से तुम कहती थी
'अरे वाह !"
और मेरी मुस्कान लम्बी सी हो जाती थी
वह नहीं होती !!!
एक-दो अपने ऐसे हैं
जिनके शब्द, जिनकी तारीफ मेरे लिए अहमियत रखती है
पर .... मुस्कान नहीं फैलती
'तुम नहीं हो कहीं' यह ख्याल
फड़फड़ाते पन्नों सा होता हैं
....
समझ रही हो न फड़फड़ाते पन्नोँ जैसे ख्याल को ?
बोलो ना
फड़फड़ाते पन्नोँ जैसे ख्याल।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
उम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरश्मि जी, अपनी चिट्ठा चर्चा में मेरे आलेख को जगह देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक पठनीय सूत्र आज के बुलेटिन में ! मुझे भी जोड़ने के लिए आपका ह्रदय से आभार रश्मि प्रभा जी !
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया दीदी....
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