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मंगलवार, 19 सितंबर 2017

फड़फड़ाते पन्नोँ जैसे ख्याल





लिखना मेरी आदत है
या तुमसे कुछ कहना
जान पाना थोड़ा मुश्किल है …
क्योंकि मैं तो आज भी लिखती हूँ
इधर-उधर पोस्ट भी करती हूँ
पढ़नेवाले पढ़ जाते हैं
लेकिन मैं संतुष्ट नहीं होती
मेरी तलाश तुम्हारी होती है …
आत्मा अमर है
तो तुम हो
दिल को बहलाने के लिए सही है बोलना
पर ....
वो जो अपनी चमकती आँखों से तुम कहती थी
'अरे वाह !"
और मेरी मुस्कान लम्बी सी हो जाती थी
वह नहीं होती !!!
एक-दो अपने ऐसे हैं
जिनके शब्द, जिनकी तारीफ मेरे लिए अहमियत रखती है
पर .... मुस्कान नहीं फैलती
'तुम नहीं हो कहीं' यह ख्याल
फड़फड़ाते पन्नों सा होता हैं
....
समझ रही हो न फड़फड़ाते पन्नोँ जैसे ख्याल को ?
बोलो ना


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6 टिप्‍पणियां:

  1. फड़फड़ाते पन्नोँ जैसे ख्याल।
    वाह बहुत खूब ।
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  2. बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. रश्मि जी, अपनी चिट्ठा चर्चा में मेरे आलेख को जगह देने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर सार्थक पठनीय सूत्र आज के बुलेटिन में ! मुझे भी जोड़ने के लिए आपका ह्रदय से आभार रश्मि प्रभा जी !

    जवाब देंहटाएं

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