सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस (अंग्रेज़ी: International Youth Day) (IYD) '12 अगस्त' को प्रतिवर्ष मनाया जाता है। किसी भी देश का युवा उस देश के विकास का सशक्त आधार होता है, लेकिन जब यही युवा अपने सामाजिक और राजनैतिक जिम्मेदारियों को भूलकर विलासिता के कार्यों में अपना समय नष्ट करता है, तब देश बर्बादी की ओर अग्रसर होने लगता है। पहली बार सन 2000 में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन किया गया था। अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का मतलब है कि सरकार युवाओं के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन 1985 ई. को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया।
वर्तमान सदी में युवा वर्ग मानव सभ्यता के ऐसे मुकाम पर खड़ा है, जब "मानव विकास गति" का रथ जेट विमान की गति से भाग रहा है। यह तीव्र विकास गति जहाँ अनेकों उपलब्धियां-सुविधाएँ और चमत्कार लेकर आ रही है, वहीँ युवा वर्ग के लिए तीव्र गति से भागने की क्षमता पा लेने की चुनौती भी। क्योंकि यदि युवा वर्ग इतना क्षमतावान है की वह तेजी से हो रहे परिवर्तन को समझ सके, उसे अपना सके, नयी खोजों, नयी तकनीकों की जानकारी प्राप्त कर अपनी कार्यशैली परिवर्तित कर सके, तो ही वह अपने जीवन को सम्मानजनक एवं सुविधा संपन्न बना सकता है, और विश्व स्तर पर अपने अस्तित्व को बनाये रख सकता है। प्रतिस्पर्द्धा की कड़ी चुनौतियों को स्वीकार करना ही सुरक्षित भविष्य की गारंटी है। आज के युवा वर्ग को विश्वस्तरीय प्रतिस्पर्द्धा में शामिल होना आवश्यक हो गया है।
पूरे विश्व में भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। अपने देश में 35 वर्ष की आयु तक के 65 करोड़ युवा हैं। अर्थात हमारे देश में अथाह श्रमशक्ति उपलब्ध है। आवश्यकता है आज हमारे देश की युवा शक्ति को उचित मार्ग दर्शन देकर उन्हें देश की उन्नति में भागीदार बनाने की, उनमे अच्छे संस्कार, उचित शिक्षा एवं प्रोद्यौगिक विशेषज्ञ बनाने की, उन्हें बुरी आदतों जैसे- नशा, जुआ, हिंसा इत्यादि से बचाने की। क्योंकि चरित्र निर्माण ही देश की, समाज की, उन्नति के लिए परम आवश्यक है। दुश्चरित्र युवा न तो अपना भला कर सकता है, न समाज का और न ही अपने देश का। देश के निर्माण के लिए, देश की उन्नति के लिए, देश को विश्व के विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में खड़ा करने के लिए युवा वर्ग को ही मेधावी, श्रमशील, देश भक्त और समाज सेवा की भावना से ओत प्रोत होना होगा।
भारत में प्राथमिक शिक्षा जो विद्यार्थी जीवन की नींव होती है, कुछ निजी स्कूलों को छोड़ कर बच्चों में शिक्षा के प्रति रूचि पैदा करने में असफल हैं। शिक्षा में गुणात्मकता के अभाव होने के कारण बच्चे सिर्फ परीक्षा पास करने की विधा सीखने तक सीमित रह जाते हैं, जिसका मुख्य कारण है शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने में विद्वान् और मेधावी युवाओं की अरुचि। शिक्षा के क्षेत्र में अपेक्षाकृत मध्यम श्रेणी की योग्यता वाले युवा इसे अपना कार्यक्षेत्र बनाते हैं। जब शिक्षक ही अधूरे ज्ञान के साथ पढ़ाने के लिए आते है, तो उनके विद्यार्थी कितने मेधावी एवं योग्य नागरिक बन सकते हैं। ऐसे शिक्षक कैसे विद्यार्थी में शिक्षा के प्रति रूचि विकसित कर सकते हैं। बिना रूचि जगाये किसी भी बच्चे को योग्य नागरिक नहीं बनाया जा सकता, उसे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के योग्य नहीं बनाया जा सकता। परिणाम सवरूप नब्बे प्रतिशत छात्र हाईस्कूल तक की शिक्षा प्राप्त कर आगे की शिक्षा से मुंह मोड़ लेते हैं या कुछ बेमन से सिर्फ डिग्री प्राप्त करने के लिए आगे पढ़ते हैं।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर .... अभिनन्दन।।
ब्लॉग बुलेटिन टीम के सब से युवा सदस्य द्वारा आज के दिन इस बुलेटिन को लगाना इसे और सार्थकता देता है।
जवाब देंहटाएंआप का बहुत बहुत आभार हर्ष।
यहाँ सब युवा हैं। जोश दिखता है नजर आता है । बना रहे। शुभकामनाएं युवाओं को। सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हर्षवर्धन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक सूत्रों के साथ बहुत अच्छी प्रस्तुति ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका हार्दिक आभार हर्षवर्धन जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंआभार हर्षवर्धन जी..