निकले एहसासों के सफर में
तो जाना
कलम जब मूर्तिकार बने
कैनवस पर कोई चित्र उकेरे
तो उस कलम की बात ही कुछ और हो जाती है
यायावर की शक्ल लिए
कई मील के पत्थर बटोर लाता है ...
"जो भी जीता हूँ वही लिखता हूँ . हर एक लम्हा जीने की ख्वाहिश ........ उसे भोगने की चाहत है. जिंदगी को नए मायने देने की किसी कोशिश-मशक्कत में हूं . इसी कवायद के बीच में आप सबसे मुखातिब होता रहता हूं अपने एहसासों को लेकर - अपने भोगे हुए सच के साथ"
आमद कुबूल करें......
इधर काफी दिनों तक गायब रहा. सच कहूँ तो वक्त नही मिला कुछ लिख पाने का ...मन लगातार करता रहा कि कुछ लिखूं. व्यस्तता ने जैसे व्यक्तिगत जिंदगी के सारे लम्हे छीन लिए बहरहाल अब ब्लॉग पर आमद कर चुका हूँ...
इधर बीते पन्द्रह दिनों में जो दो महत्त्वपूर्ण बातें रहीं ,वे थीं निजामी बंधुओं के कव्वाली प्रोग्राम और अमिताभ दास गुप्ता का नाटक " नयन भरी तलैया" देखने का अवसर मिला.
पहले निजामी बंधुओं पर चर्चा. निजामी बंधुओं की कव्वाली देखने में बड़ा मज़ा आया .भारत की गंगा जमुनी संस्कृति के उस्ताद शायर आमिर खुसरो,बाबा बुल्ले शाह से लेकर समकालीन शायरों जैसे राहत इन्दौरी और बशीर बद्र के शेरों को चुनकर उन्हें कव्वाली में पिरोकर इस खूबसूरती के साथ सुनाया कि हम लगातार वाह वाह करते रहे. मेरे प्रिय शायर आमिर खुसरो साहेब की आल टाइम लीजेंड "मोसे नैना लड़ाए के" तो सुनकर मज़ा आ गया. " मेरे मौला जिसपे तेरा करम हो गया, वो सत्यम शिवम् सुन्दरम हो गया" से आगाज़ करने वाले निजामी भाइयों ने महफ़िल लूट ली.ये गायक निजामी भाइयों के नाम से जाने जाते हैं. ये गायक बंधु सिकंदर घराने से ताल्लुक रखते हैं. यह घराना बीते 700 सालों से कव्वाली गायकी में लगा हुआ है.यह घराना हज़रात निजामुद्दीन और खुसरो साहेब के दरबारी गायकी से सम्बन्ध रखता है सूफी कव्वाली को "कौर तराने " से शुरुआत करते हैं . यह तकनीकी बात मुझे इसी कार्यक्रम में जाकर मिली . हमारे दोस्तों कि मांग पर उन्होंने महान गायक नुसरत फतह अली खान की गई कव्वाली "अल्लाह हूँ, अल्लाह हूँ" तथा ऐ आर रहमान की कम्पोज़ "मौला मेरे मौला" भी सुनाई. अब जबकि लगातार पुराणी संस्कृति से कलाकार दूर हिते जा रहे हैं ऐसे में विगत ७०० सालों की शानदार परम्परा को निभा रहे निजामी बंधुओं की गायकी और उनके हौसले को देखकर अपनी गंगा जमुनी संस्कृति पर हमें गर्व होना स्वाभाविक है.
अमिताभ दास गुप्ता का नाटक " नयन भरी तलैया" देखने का अवसर मिला. यह नाटक सत्ता और आम आदमी के बीच कि दूरी और उनकी प्राथमिकताओं को दर्शाता था. कहानी कुछ इस तरह थी कि एक राज्य में सूखा पड़ा हुआ है तालाब-नदी -पोखर सभी सूख चुके हैं. राजा- रानी इस सबसे बेखबर हैं. अपनी शानो-शौकत की जिंदगी बसर कर रहे हैं. उधर एक गाँव में सुखनी नाम की एक एक लड़की गाँव में एक कुआँ खोदने वाले एक आदमी से प्यार करती है. इसी बीच राजा के दरबार में एक साधू आता है और बताता है कि सूखा से तभी निपटा जा सकता है कि जबकि राज परिवार का कोई सदस्य कुएं में कूद कर अपनी जान दे दे...तब जोर से पानी बरसेगा.....राज परिवार में कोई भी अपनी जान देने को तय्यार नही होता है....रानी तब अपनी कुटिल बुद्धि से राजा को एक उपाय सुझाती है कि क्यों न अपने सबसे छोटे तीसरे पुत्र कि शादी किसी गाँव की लड़की से कर दें और उसको कुएं में कुदा दें इससे राज परिवार भी बच जायेगा और सूखे कि समस्या से भी निपटा जा सकेगा. राजा को यह विचार पसंद आ जाता है और लड़की खोजी जाती है अंतत लड़की सुखनी ही मिलती है.........उससे राजकुमार की शादी की जाती है,और उसे कुएं में धकेला जाता है.....एक दर्द भरा एंड इस नाटक का होता है जो यह सोचने पर विवश करता है कि सत्ता अपने स्वार्थ के लिए किस कदर अंधी हो जाती है... नाटक के सभी पात्र काफी गुंथे हुए थे. लगभग डेढ़ घंटे का यह नाटक शिखर और धरातल के बीच की खाई को स्पष्ट समझा गया.
और फिर गायब हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए
वाह कब्बाली ! सारी कब्बलियां एक एक करके जेहन में घूम गयी । और नाटक तो आँखों में पानी ले आया ।
जवाब देंहटाएंवाह कब्बाली ! सारी कब्बलियां एक एक करके जेहन में घूम गयी । और नाटक तो आँखों में पानी ले आया ।
जवाब देंहटाएंपवन कुमार से जी परिचय प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर ब्लॉग।
जवाब देंहटाएंपवन दादा को पढ़ना और सुनना हमेशा ही एक सुखद अनुभव होता है |
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