2007 से मैंने ब्लॉगिंग की यात्रा शुरू की, खट्टे-मीठे,तीते-फीके कई अनुभव मिले। लिखना ध्येय था, सत्य का सारांश अडिग था, तो झूठ का भी अपना एक सम्बल था, क्योंकि झूठ को झूठ कहने की ताकत थी !
पहले जब हम राजकमल प्रकाशन, वाणी प्रकाशन जैसे उच्च कोटि के प्रकाशनों से पुस्तकें लेते थे, तो उसमें अपनी रूचि शामिल होती थी। हर तरह की किताबें इन प्रकाशनों से होतीं, अन्य प्रकाशनों की भी किताबें होतीं - शरतचंद्र की पुस्तक देवदास थी, तो एक और देवदास मालती जोशी द्वारा लिखी गई कहानी भी है , कुछ लोगों ने सिर्फ शरतचन्द्र को पढ़ा होगा, कुछ लोगों ने मालती जोशी को ... शायद ही किसी ने दोनों पढ़ा हो !
इसी तरह एक नाम और चर्चित रहा, वेद प्रकाश शर्मा। इन्होंने सस्ते और लोकप्रिय उपन्यासों की रचना की है।
वर्दी वाला गुंडा वेद प्रकाश शर्मा का सफलतम थ्रिलर उपन्यास है। इस उपन्यास की आजतक लगभग 8 करोड़ प्रतियाँ बिक चुकी हैं। भारत में जनसाधारण में लोकप्रिय थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में यह उपन्यास "क्लासिक" का दर्जा रखता है।
पत्रिकाओं के क्षेत्र में धर्मयुग,कादम्बिनी की दुनिया थी, तो मायापुरी,मनोहर कहानियाँ भी अपना स्थान रखती थीं। बस सबकी पसंद के अपने अपने साँचे थे !
इसी तरह ब्लॉग्स भी प्रसिद्ध हुए, कुछ नज़रों से दूर रहे .. कुछ यूँ ही बने।
मैं तीनों दिशा में गई विगत 9 वर्षों में ... कोई ब्लॉग स्पेशल चाय जैसी, कोई फीकी, कोई काली, कोई डिप डिप वाली ...
चलिए ओल्ड इज़ गोल्ड की सार्थक गलियों में मेरे साथ ...
ब्लॉग और किताबों का सफरनामा समय के साथ उतार-चढ़ाव लिए जाने कितने ही मोड़ों से गुजरता रहता है लेकिन ठहरता नहीं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यादगार प्रस्तुति
सुंदर यादें है ब्लॉग जगत की
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज का ब्लॉगजगत मीड़िया बनता जा रहा है
उच्च कोटि की रचनाओं का सर्वथा अभाव महसूस होता है
सादर
चलिए :)
जवाब देंहटाएंवाह कुछ नया ।
जवाब देंहटाएंमेरी ऊँगली...........💐
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