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शनिवार, 29 अप्रैल 2017

जाने किसकी आखिरी चिट्ठी गैरमौजूदगी में पहुँची




घर से तो हम निकल आए थे
उसके बाद भी तो डाकिया आया होगा
कुछ बन्द लिफाफे रख गया होगा
....
जाने किसी ने खोला या नहीं !!!

घर की सफाई करते हुए 
फेंक दिया होगा बाहर 
सड़क पर खेलते बच्चों ने खोला होगा
चिट्ठी की नाव बनाई होगी 
किसी नाले में बहाया होगा 
जाने किसकी आखिरी चिट्ठी गैरमौजूदगी में पहुँची
मन करता है पढ़ूँ
सम्भवतः किसी ने मनाया होगा
...

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इच्छामृत्यु की सुविधा - मेरा मन - blogger

मौजूदा हालतों में साहित्य की भूमिका और दखल



संवेदनाओं से लद कर झुकी हुई
प्रेम में पग कर परिपक्व
मेरा ऐसा झुकना और पगना
पसंद भी करोगे तुम?
शायद नहीं..
तुम फूलों के रस रूप रंग से मादक हो
और मैं फूल के बस खिल जाने से सम्मोहित..
महसूस करने का ये अंतर
युगों का फ़ासला है..😊

वस्त्र
जिंदगी के पास होते हैं
सिर्फ तीन वस्त्र
भूत, वर्तमान और भविष्य
रोज़ बदलती है वो भूत वाला वस्त्र
कुछ रेशे चिपके ही रह जाते है
यादों पर
मन पर भी कुछ कुछ
ज्यादा झाड़ों तो कमबख़्त रेशे
कांटे जैसे गढ़ जाते हैं.....
मेरा कहा मानो
आज जब जिंदगी वर्तमान पहने तो
उतरे हुए वस्त्रों को
अन्तर्मन की गंगा में
प्रवाहित कर दो.....

1 टिप्पणी:

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