प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
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कचरे में फेंकी हुई रोटी
रोज़ ये बयां करती है...
कि पेट भरने के बाद
इन्सान अपनी औकात भूल जाता है।
रोज़ ये बयां करती है...
कि पेट भरने के बाद
इन्सान अपनी औकात भूल जाता है।
सादर आपका
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आस अभी ज़िंदा है
दोहे
सखा
झारखण्ड एक्सप्रेस 5
गुलमर्ग - विश्वप्रसिद्ध पर्वतीय स्थल की सैर
चीजलिंग का नाश्ता
लाशों को गिनने का सिलसिला बंद होना चाहिए
वीर कथाएँ और प्रणय प्रस्ताव
कब साकार होगा नशा मुक्त देवभूमि का सपना
गेंहू के संग घुन पिसता हो तो पिसे
कुनू अमू
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
अभी तो दोहे बांच कर आनन्दित हूँ...वाह!
जवाब देंहटाएंप्रेरक सन्देश के साथ सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन काफी दिनों के बाद आये शिवम जी ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती बुलेटिन...जितना खा सको उटना ही लो थाली में...मेरी रचना को स्थान देने के लिए शुक्रिया...और उनका भी आभार जो दोहे पढ़कर टिप्पणी किए|
जवाब देंहटाएंरोटी कब नाच नचा दे, कोई नहीं जानता
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंwww.travelwithrd.com
ब्लॉग बुलेटिन से शिवम मिश्रा जी, मेरे ब्लॉग '' अब छोड़ो भी''को जगह देने के लिए धन्यवाद
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