काँटों में उलझ
लहूलुहान
गलत -सही बनकर
जब मैं आखिरी पायदान पर
संतुलित होकर खड़ी हो गई
तो अपनी गलतियाँ भी सार्थक लगी हैं !
कोई भी मंज़िल
बहारों से होकर नहीं गुजरती
कीचड़ अधिक मिलते हैं !
निःसंदेह,
कीचड़ शुक्रगुज़ार नहीं होते
पर,
मैं उनकी शुक्रगुज़ार हूँ
क्योंकि उनकी नियतों से वाकिफ होते हुए
मैंने बहुत कुछ जाना
कई विषम पड़ाव पार किये !
दुर्गम रास्तों से होकर ही
कुछ सीधे रास्ते मिलते हैं ...
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सुन्दर।
जवाब देंहटाएंदुर्गम रास्तों से होकर ही
जवाब देंहटाएंकुछ सीधे रास्ते मिलते हैं
सही कहा...अच्छी कविता..
नए ढंग से प्रस्तुत बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार
जवाब देंहटाएंये फोटो आपने मेरे ब्लॉग से लिया है, जिसका लिंक यहाँ से रहा हूँ ! कम से कम क्रेडिट तो दे देते मुझे !
जवाब देंहटाएंhttp://www.omusafir.com/2015/08/mcleodganj-to-triund-trek.html
प्रदीप जी,
हटाएंहम फ़ोटो गूगल से लेते हैं, बाक़ी रहा सवाल क्रेडिट देने का तो इस ब्लॉग की ख़ासियत ही यही है कि वो लोगों तक उनका 'क्रेडिट' पहुंचाए।
एक बार पूरे ब्लॉग को देखिएगा आप ख़ुद समझ जाएंगे।