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रविवार, 16 अप्रैल 2017

अनजान से रास्ते, हम और आप...

मित्रों आज के बुलेटिन में कुछ अपनी बातें करते हैं... परिवार और घर से जुडी हुई.... न्यूयॉर्क में एक स्कूल ने एक छोटा सा सर्वे किया जिसमे उन्होंने माता पिता से यूँ ही पूछा कि अगर आप किसी को घर पर डिनर के लिए बुलाना चाहें तो किसे बुलाएंगे.. किसी ने हॉलीवुड के स्टार तो किसी ने गोल्फ, बॉलीबॉल या फुटबाल या बेसबॉल के खिलाड़ी का नाम लिया। जब उन्ही के बच्चों से पूछा गया कि तुम किसे बुलाना चाहोगे तो कई बच्चों ने कहा कि वह अपने परिवार माँ-पिता दादा दादी और नाना नानी से साथ डिनर करना चाहेंगे। अब यह बात तो छोटी सी है लेकिन अपने आप में बहुत बड़ी है... अनजानें में ही सही लेकिन हमने एक अजीब सी मशीनी ज़िन्दगी अपना ली है जिसमे सब कुछ है लेकिन रिश्तों की कमी है। बच्चे भी बचपन से ही अकेले रहने के आदी हुए जा रहे हैं क्योंकि भाग-दौड़ से भरी हुई इस ज़िन्दगी में अपने अपनों के लिए भी समय की कमी सी हो रही है। सोशल मीडिया ने दूरियां कम ज़रूर की है लेकिन फिर भी बढ़ते विकास ने इंसानी रिश्तों की दूरियां बढ़ा जरूर दी हैं।

कुछ चीजें ज़रूरी हो गयी हैं:
  • कम से कम दो समय का खाना बच्चों के साथ खाएं 
  • उन्हें रोज़ पांच नए शब्द सिखाएं 
  • उन्हें सामाजिक कार्यक्रमों में ले जाने से पहले समझाएं कि आखिर इसी सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम का क्या महत्त्व है, इतिहास और संस्कृति की शिक्षा बचपन से ही देना आवश्यक है
  • लोक-गीत सिखाएं, यह सुनकर अजीब सा लगता है लेकिन सच है कि पीढ़ियों के बीच के सन्नाटे ने लोक-गीत और लोक-परम्पराओं को बहुत नुकसान पहुंचाया है
  • किस्सों और कहानियों में इतिहास, संस्कृति की शिक्षा दें 
  • टीवी और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट पर रोक कठिन है लेकिन अनुशासन आवश्यक है 
  • अगर बच्चे घर फैलाते हैं तो उन्ही को समेटने को कहना ज़रूरी है
  • ज़िम्मेदारी लेना सिखाएं (रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड एकाउंटेबिलिटी) 
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एंटी ईवीएम छेड़छाड़ स्क्वाड

6 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ संध्या
    वाह...
    आनन्दित हुई
    आभार
    सादर....

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  2. मेरी प्रस्तुति 'द्रौपदी का दर्द' को आज के बुलेटिन में सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार देव कुमार झा जी ! बहुत-बहुत धन्यवाद !

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  3. उम्दा बुलेटिन.
    मेरी पोस्ट को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार!

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