प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
प्रणाम |
एक आदमी ने बहुत कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर उसके सामने भगवान प्रकट हुए और बोले,
"माँगो वत्स, क्या वर चाहिए?"
आदमी: "अरे प्रभु, थोड़ा सिस्टम से चलिए, पहले तपस्या भंग करने के लिए अप्सराएं आती हैं, फिर आप आना।"
सादर आपका
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एमस्टर्डम : क्या दौड़ता है इस शहर की रगों में !
आज का युगधर्म
खोलिये, खोलवाइये और मोक्ष पाइये, खेलिये कालिदासी होली!
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काँटों में गुलाब : लघुकथा
राजर्षि रणसीजी तंवर
जिन्दगी लीज पर है, फ्रीहोल्ड थोड़ी है...
अद्भुत और बहुत उपयोगी जानकारी जो जरुरी है अपनानी
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
बढ़िया प्रस्तुति शिवम जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्र सयोजन
जवाब देंहटाएंबधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार शिवम मिश्रा जी
"अद्भुत और बहुत उपयोगी जानकारी जो जरुरी है अपनानी"
शुभ प्रभात पण्डित शिवम जी मिश्र
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ठ अंक
सादर
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स | जय हिन्द
जवाब देंहटाएंमेरी लघुकथा 'काँटों में गुलाब' शामिल करने के लिए शुक्रिया शिवम् जी...सूत्र अच्छे लगाये हैं.
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
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