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शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

2016 अवलोकन माह नए वर्ष के स्वागत में - 39




ज़िन्दगी अनुभवों का सिलसिला है  - बचपन, युवा, और उससे आगे क्रमशः बढ़ता जीवन स्थापित ज्ञान को दुहराता है, पात्र बदल जाते हैं,कहने का अंदाज़ बदल जाता है, अर्थ लेने देने का समय बदल जाता है !
"गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय | बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय"
कबीर की ये पंक्तियाँ उम्र के साथ साथ अल्प से वृहद् अर्थ देती हैं। 

आज 
Manoj Kumar जी के आत्मचिंतन की धारा से गुजरा जाए - अवलोकन की माँग है 


अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है, 
क्योंकि अपने दोष देखना हमें अप्रिय लगता है।


जैसा लक्ष्य रखेंगे वैसे लक्षण स्वत: आयेंगे।

दूसरों के अवगुण न देखना ही सबसे बड़ा त्याग है।

जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो। 
यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो।

सदा नम्रता की पोशाक पहने रहिए, 
इससे दूसरों का प्रेम व सहयोग स्वत: ही मिलेगा।


यदि हमारा पैर फिसल जाए हम संभल सकते हैं, 
परन्तु जुबान फिसल जाए तो यह गहरा घाव कर देती है, इसलिए सावधान रहिए।

हम में अपनी सीमाओं से पार जाने की काबलियत होती है लेकिन जब जिंदगी में सब ठीक ठाक चल रहा होता है, तो हम कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते।

होठों पर मुस्कान हर मुश्किल कार्य को आसान कर देती है।

जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं।

भलाई का एक छोटा सा काम हजारों प्रार्थनाओं से बढकर है ।

दर्पण में आप अपना चहेरा देख सकते र्हैं, चरित्र नहीं।

दुर्बल चरित्र वाला उस सरकंडे के समान है जो हवा के हर झोंके से झुक जाता है।

चिन्ताग्रस्त व्यक्ति मृत्यु से पहले कई बार मरता है। कामनाओं का त्याग करो, चिन्ताएँ स्वयं पीछा छोड़ देंगी।

आदर्श के दीपक को पीछे रखने वाले अपनी ही छाया के कारण अपने पथ को अंधकारमय बना लेते हैं।

मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या है 

“यदि आप कुछ करना चाहते हैं, तो ऐसा कुछ करें, जिसे पैसे से ख़रीदा या नापा नहीं जा सके।”

"यहाँ दो तरह के लोग होते हैं। एक वो जो काम करते हैं और दूसरे वो जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते है। कोशिश करना कि आप पहले समूह में रहो क्योंकि वहाँ कम्पीटीशन कम है।"

कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं।

अच्छे ढंग से कही हुई बात सभी भाषाओं में प्रभावी होती है।

जो मनुष्‍य अपने क्रोध को अपने ही ऊपर झेल लेता है वह दूसरों के क्रोध से बच जाता है।

जीवन में कुछ पीड़ा न हो, कुछ कष्ट न हो, कुछ कठिनाई न हो तो आदमी किस चुनौती पर जिए। चुनौतियों से प्ररेणा लेकर जो चढ़ाई करता है, विजयश्री उसे ही मिलती है।

करूणा में शीतल अग्नि होती है 
जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है।

सरलता में महान सौंदर्य होता है। जो सरल है, वह सत्य के समीप है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. मनोज भाई साहब को पढ़ना अच्छा लगा
    बहुत दिन से ब्लॉग पर उनकी नयी पोस्ट पढ़ने को नहीं मिल रही है, ..शायद अब फिर से लिखें ...

    जवाब देंहटाएं

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