अजय - जो हमेशा जीते।
कलम जिसकी ताकत हो, उसकी बात ही अलग है। अवलोकन के पूरब से वह उदित होता ही होता है
दर्द में साथ होना बेहतर है, लेकिन दर्द से उबरना,लड़ना जो बताये उसीकी जय है
सुनो !
आरुषी,प्रियदर्शनी ,निर्भया ,
करुणा ,
सुनो लड़कियों
तुम यूं न मरा करो ,
हत्या कर दो ,
या अंग भंग ,
फुफकार उठो ,
डसो ज़हर से,
बन करैत,
बेझिझक ,
बेधड़क ,
प्रतिवाद ,
प्रतिकार ,
प्रतिघात , करा करो
सुनो !
आरुषी,प्रियदर्शनी ,निर्भया ,
करुणा ,
सुनो लड़कियों
तुम यूं न मरा करो ,
तुम मर जाती हो ,
फिर मर जाती हो ,
मरती ही जाती हो ,
मरती ही रहती हो ,
कभी गर्भ में ,
कभी गर्त में ,
कभी नर्क में ,
दुनिया के दावानल में
तुम यूं न जरा करो ,
सुनो !
आरुषी,प्रियदर्शनी ,निर्भया ,
करुणा ,
सुनो लड़कियों
तुम यूं न मरा करो ,
मोमबतियां जलाएंगे ,
वे सब ,
खूब जोर से ,
चीखेंगे चिल्लायेंगे ,
मगर ,
खबरदार , जो
भरम पाल बैठो ,
बीच हमारे ही ,
से कोइ हैवान ,
फिर से ,
फिर फिर ,
वही कर उठेगा ,
वो नहीं आयेंगे ,
मरते मरते तो कह दो उनसे ,
तुम यूं न गिरा करो ,
सुनो !
आरुषी,प्रियदर्शनी ,निर्भया ,
करुणा ,
सुनो लड़कियों
तुम यूं न मरा करो ,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंरश्मि दीदी , शिवम् भाई ,सलिल दादा , राजा भाई देव बाबू और सब , आप सबका शुक्रिया और आभार ,स्नेह बनाए रखियेगा |
जवाब देंहटाएंबुलेटिन आज ब्लॉग जगत में एक पहचान बना चुका है एक आदत बन चुका है तो वो आप सब मित्रों के कारण ..आने वाले समय में बुलेटिन अपने नए प्रयोगों के साथ एक बार फिर ब्लॉग खबरी के रूप में आपका करीबी बना रहेगा
बहुत गहरी ... दोचने को मजबूर करती रचना ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंआज की आवश्यकता यही है , बहुत खूब लिखा है
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