Pages

बुधवार, 28 सितंबर 2016

भूली-बिसरी सी गलियाँ - 10




आँसुओं का बह निकलना 
मन की कमज़ोरी नहीं 
मन की दृढ़ता है 
जो दर्द को गहराई से जीता है 
सोचता है 
करवटें लेता है 
छत निहारता है 
कब आँखें भरीं 
कब दर्द छलका - पता भी नहीं चलता !


An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय

समालोचन





6 टिप्‍पणियां:

  1. सबके नहीं छलकते हैं आँसू
    नमी हर जगह नहीं होती
    आँखें रेगिस्तान भी होती हैं
    आँसू दिखते हैं वहाँ
    पर वो मरीचिकायें होती हैं ।

    सुन्दर बुलेटिन ।

    जवाब देंहटाएं
  2. इतनी लंबी होगी यह श्रृंखला ये कभी सोचा न था.

    जवाब देंहटाएं
  3. सकारात्मक प्रयास बहुत अच्छा लगा |

    जवाब देंहटाएं
  4. बुलेटिन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

    #ब्लॉग मालिक
    ज़ीरोकट्ट्स http://zeerokattas.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!