ब्लॉग पर आना-जाना कम हुआ
पर यादें पुख्ता हैं
और इन्हीं यादों की कशिश में
फेसबुक पर उन ब्लॉगरों तक जाना हो जाता है
यूँ कहें
एक रस्म अदायगी !
वक़्त की कमी होती
तो फेसबुक पर महफ़िल न सजती
समय की कोई पाबन्दी नहीं यहाँ
जब चाहें
जब तक चाहें
घूमते रहिये
क्या पढ़ें, क्या भूलें की कशमकश है
और बेचारा एक 'लाइक बटन'
उपस्थिति दर्ज है भाई
कभी कभार टिप्पणी भी ...
... अधिकतर सबके मन में है
तुम नहीं तो मैं क्यूँ :)
ब्लॉग के होठों पर एक ही गीत है -
"तू जो नहीं है तो कुछ भी नहीं है,
ये माना कि महफ़िल जवां है, हसीं है"
ब्लॉग्स के आग्रह पर मैं कह रही हूँ -
"चलो, तुमको लेकर चलें
हम उन फ़िज़ाओं में
जहाँ मीठा नशा है तारों की छाँव में"
उसके पहले बता दूँ कि 2007 में मैंने ब्लॉग बनाया, उडनतश्तरी,रंजना भाटिया, संजीव तिवारी, राज भाटिया,नीरज गोस्वामी ... को मैं हमेशा पढ़ती, इनकी टिप्पणी मुझे आह्लादित करती, कुछ विशेष ख़ुशी होती, फिर और भी विशिष्ट लिखनेवालों से जुड़ती गई ... जहाँ तक हुआ है, मैंने समेटा है, जो छूट गए, उन्हें पता तो है कि मैं जुडी हूँ ...
आइये क्रम से मिलते हैं, ...
उड़न तश्तरी ....
कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **
एक आलसी का चिठ्ठा ...so writes a lazy man
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
गुल्लक
अपनी, उनकी, सबकी बातें
ज्ञानवाणी
मैं घुमन्तू
स्पंदन SPANDAN
गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र
मेरी कलम से..... - Blogger
Amrita Tanmay
अपनों का साथ
हरकीरत ' हीर'
मसि-कागद
क्रमशः
मेरे लिए भी ये जगत कुछ ऐसा ही है जैसे -
जवाब देंहटाएंहंसा पाये मानसरोवर
मन मस्त हुआ क्या कहिए रे !
आपका आभार ।
तुम नहीं तो मैं क्यों वाली बात अच्छी लिखी. अहम सबमें घर कर गया किसी में कम किसी में ज्यादा.
जवाब देंहटाएंफिर भी कुछ ब्लॉग इतने अच्छे/ इतने अपने लगते हैं कि उन्हें किताब के पन्ने की तरह पलट पलट कर पढ़ती रही हूँ .
ये सच है दी कि ब्लॉग ने पाला पोसा है....फेसबुक पर भी उन्हें से ज़्यादा आत्मीयता बढ़ी जिन्हें ब्लॉग के दौर से जाना :-)
जवाब देंहटाएंहाँ लेकिन तुम नहीं तो मैं क्यूँ- तो ब्लॉग में भी हमेशा महसूस हुआ....फॉलो भी यूँ किया गया जैसे...क्या कहूँ...
मगर ये तो दुनिया के दस्तूर हैं....इंसान सब जगह एक सा है...
मगर मेरे लिए ब्लॉग लिखने में आपका प्रोत्साहन शायद सबसे बड़ी चीज़ थी....और हीर जी का भी...
:-)
शुक्रिया दी...हमेशा !!
अनु
"एक आलसी का चिट्ठा" अपने आलस्य से उबर गया है... "चला बिहारी..." की अपने रंग में वापसी हो चुकी है. अब आपने जब यह श्रृंखला शुरू कर ही दी है तो हम भी घूम आएँ कुछ पुरानी यादों के गलियारों में...! आपकी यह विशेषता हमेशा दिल को छू जाती है, एक नौस्टाल्जिक सा अनुभव!! क्या बात है दीदी!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रयास और कमाल का अंदाज़ रश्मि दी | बहुत ही सुन्दर बुलेटिन
जवाब देंहटाएंयादों की बारात निकली है ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर यादगार बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
हम यहीं मिले थे
जवाब देंहटाएंठहरे भी हैं
जो है आपके साथ की वजह से हैं
आभार
वाह बहुत सुन्दर कुछ अलग सी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबस यह गाना याद आता है....छोड़ आए हम वो गलियां...
जवाब देंहटाएंगुजरते हुए उन राहों से, जहाँ कभी सबका बसेरा था, अच्छा लगा.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रयास.
सच दी वो भी क्या दिन थे ..........मैंने खुद २००७ में बनाया था और धीरे धीरे यहाँ सबसे जुड़ी थी
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से ऐसा कुछ करने का विचार मन मे आ रहा था ... बिना कुछ कहे ही दीदी आपने न जाने कैसे जान लिया ... लोग सच ही कहते है ... दिल की बात को दिल ही समझता है ... और जब मामला छोटे भाई और दीदी का हो तब तो इस की रफ्तार और भी तेज़ रहती है ... :)
जवाब देंहटाएंजय हो दीदी आप की |
ब्लाग जगत फिर सक्रीय हो गया है।
जवाब देंहटाएंफ़िर से यादें हरी हो गई...आभार
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