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शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

मज़हबी या सियासी आतंकवाद

पिछले हफ्ते हमने इस्लामिक आतंकवादियों के द्वारा बांग्लादेश में किये हमले और उसके बाद विश्व समुदाय के गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये को देखा। मुझे पश्चिम का रुख ठीक मुंबई हमले सरीखा ही दिखा और इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता। हाँ यदि ऐसा किसी गोरे मुल्क में हुआ होता तो बात अलग होती न जाने कहाँ कहाँ मोमबत्ती रैली निकाले होते। क्या हमने कभी सोचा है क्या कि अमेरिका और पश्चिमी देश हमेशा पाकिस्तान के पीछे क्यों खड़े रहते हैं?यह बात समझना हम भारतीयों के लिए उतना कठिन नहीं लेकिन ज़रूरी जरूर है। आप खुद सोचिये कि लादेन की तलाश में दुनिया भर में बवाल करने वाले अमेरिका को लादेन को पाकिस्तान में आराम करते हुए देखकर कोई दिक्कत नहीं हुई वह फिर भारत के दुश्मन नंबर एक हाफ़िज़ सईद पर क्यों कुछ कहेगा? हाँ भारत को खुश करने के लिए उसे वांटेड ज़रूर घोषित कर रखा है लेकिन फिर भी अमेरिका कभी भी पाकिस्तान से कुछ नहीं कहेगा। आखिर अमेरिका की पाकिस्तान से ऐसी दोस्ती क्यों है, आइए समझने का प्रयास करते हैं। 

मित्रों, शीत युद्ध का सहारा लेकर सोवियत संघ के खिलाफ इस्लामिक आतंक का कुचक्र खड़ा करने वाला देश अमेरिका ही है और शीतयुद्ध के इस काल में जब सभी छोटे छोटे (तीसरी दुनिया के देश) अमेरिका या सोवियत संघ दोनों में से किसी एक के खेमे में शामिल होने लगे। भारत की राह से इतर इस्लामिक पाकिस्तान ने अमेरिका को एप्रोच किया और पाकिस्तान ने अपनी भौगोलिक स्थिति का लाभ देने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान का फायदा समझाया। अमेरिका उस समय एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था था और उसे दक्षिण एशिया में साम्यवादियों के बढ़ते हुए प्रभाव के विरुद्ध एक मोर्चा बनाने के लिए पाकिस्तान एकदम आदर्श देश लगा। यहीं से भारत और पाकिस्तान, सोवियत संघ और अमेरिका के शीत युद्ध में फंस गए। यह कुचक्र कुछ ऐसा था जिसमे अमेरिका की सीआईए ने सोवियत संघ के मित्र देशों के खिलाफ भयंकर जासूसी अभियान चलाना शुरू किया। मित्रों, भाभा और लालबहादुर शास्त्री जी की मृत्यु इसी सीआईए की साजिश थी। यह बात हमें आज अचंभित कर सकती है लेकिन भारत इस साजिश को समझ ही नहीं पाया।  

आज भी मुझे कोई समझाए कि मध्य-पूर्व या ईराक सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में शांति में था या इस्लामिक स्टेटस जैसे आतंकी संगठन के नेतृत्व में? आज भी जब रूस हवाई कार्यवाही करता है तो अमेरिका जमीनी कार्यवाही शुरू कर देता है, इस साज़िश को समझिए। विश्व के बड़े देशों ने आतंक को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है और अब साउथ-एशियन कॉरिडोर बनाने की तैयारी हो रही है। इस खेल में अमेरिका से लेकर चीन तक शामिल हैं। उनकी इस हरकत में जब उन्हें मुस्लिम नेताओं की गैर-ज़िम्मेदाराना रवैये से भरी हुई आत्मघाती सोच और व्यक्तिगत स्वार्थ का साथ मिल जाता है तब चिंता जनक हो जाती है। एक भी मुस्लिम नेता या धर्म गुरु ने इसकी निंदा की हो तो मुझे बताएं, एक ने भी आज तक आईएस के खिलाफ फ़तवा दिया हो तो बताएं? एक ने भी अपनी पीढ़ियों से चली आ रही रूढ़िवादिता के खिलाफ आवाज़ उठाई हो तो बताएं? हाँ आवाज़ उठने पर उसे विवादित तो बना ही दिया जा सकता है। यह इतना घातक है की यदि इस्लामिक स्टेट ने युद्ध छेड़ने की आवाज़ उठा भर दी तो भारत या बांग्लादेश के हर शहर में बसे हुए पाकिस्तान भयंकर तांडव खेलने लगेंगे। 

भैया यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट ज़रूरी हो रहा है, इन मुस्लिम नेताओं पर प्रतिबन्ध लगाओ, वोट बैंक का धंधा बंद करो नहीं तो भारत अगला रूस बन जायेगा।
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कुत्ता नहीं...आदमी गिर रहा था नीचे !

...इन्साफ फ़ुटबाल है

आस भरी तसल्लियाँ

!!!बबूल का कांटा!!!

रस्किन बांड का एक संस्मरण-किस्सा और हिंदी में उनकी नई किताब

एक शब्द

७ वीं पुण्यतिथि पर ओम दद्दा को शत शत नमन 

मैं बंधा उस डोर से

4 टिप्‍पणियां:

  1. छोटे छोटे आतंकवादों को झेलते छोटे लोग कोई बात नहीं करता है क्यों करे घर पर आतंकियों के ऊपर ग्रहस्वामी का आशीष । लगे रहिये । सुन्दर प्रस्तुति ।

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  2. तहेदिल से आभार!!!!सारे लिंक पर पहुँचते समय मilte ही 🙏

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