हमने जेएनयू के क्रांतिकारी देखे, मीडिया में बैठे बुद्धिजीवी क्रांतिकारी देखे और एनजीओ के क्रांतिकारी देखे और भी बहुत से सोशल मीडिया के और क्रांति और आज़ादी की मांग करने वाले लोगों का समर्थन करने वाले घनघोर टाइप के तटस्थ लोग भी देखे जो चुप रहकर तटस्थ रहने की नौटंकी करते हैं। ऐसा नहीं है कि यह लोग आज कल पैदा हो गए हैं, बल्कि यह लोग हमेशा से थे और हमारे आस पास ही रहते थे। पाकिस्तान के जीतने पर भारत में कई मिनी पाकिस्तानों में पटाखे पहले भी फूटते थे अब भी फूटते होंगे और क्या मजाल जो इनकी गतिविधियों पर कोई भी रोक हो? हमारे ही देश में रहने वाले यह कौन लोग हैं? यह कौन लोग हैं जो आतंकवादी की सजा माफ़ कराने के लिए आधी रात में सुप्रीम कोर्ट खुलवा देते हैं? यह कौन लोग हैं जो अलगाववाद और पाकिस्तान परस्ती पर चलते हैं और आराम से हमारे ही टैक्स के पैसे पर फलते है लेकिन सरकारें भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पातीं? इन सभी में एक बात कॉमन है, यह सभी किसी न किसी फतवे या वोट बैंक की खैरात पर पलने वाले दल से सम्बन्ध रखते हैं और इसीलिए इन्हें राष्ट्रहित से कोई सरोकार नहीं है।
इन्हें अरब, पाकिस्तान परस्त पश्चिम देशों से बड़ी मात्रा में चंदे के रूप में पैसा मिलता है और उन्हें यह पैसा अपने वॉलंटियर्स पर खर्च करना होता है। यहीं से क्रान्ति जन्म लेती है और पोस्टर बॉय बनाये जाते हैं, उन्हें उसी पैसे पर पल रहा मीडिया हवा देता है और दो कौड़ी के पोस्टर बॉय किसी फिल्मी हीरो जैसे प्रस्तुत किये जाते हैं। इसी सोच से प्रेरित होकर बरखा दत्त मासूमियत से सेना की फ्लाइट की डिटेल तक ट्वीट कर देती हैं, उन्हें मासूम बता देती हैं, राजदीप ऐसे देशद्रोहियों की तुलना भगत सिंह से कर देते हैं और जब सोशल मीडिया से उन्हें जवाब मिल जाता है तब वह "भक्त" चिल्लाने लगते हैं। इस मीडिया को कश्मीर में एक आतंकी को मारने के बाद सेना के विरोध में पत्थर बाजी करने वाले लोग "भटके हुए" ही दिखे लेकिन राष्ट्र विरोध का पैसा खाने वाला मीडिया इस खबर को छिपा ले गया कि यह लौंडे पांच सौ रूपए मिलने पर ऐसा किये। मनमोहन सरकार ने सेना को गुलेल पकड़ा दी थी और आज जब मोदी ने गुलेल की जगह पैलेट गन का इस्तेमाल किया तब इसी मीडिया को आतंकियों से सहानुभूति रखने वाले लोग अचानक से "पीड़ित" लगने लगे? इस मीडिया ने क्या कभी किसी घायल फौजी के घर जा कर रिपोर्टिंग की है? क्या किसी सैनिक के घर की दिक्कतों पर कोई रिपोर्ट चलाई है? क्या कभी शहीद के परिवार पर कोई रिपोर्ट, डॉक्यूमेंट्री बनाई है?
वैसे वह नमक का कर्ज अदा कर रहे हैं क्योंकि इन्हें पैसा तो राष्ट्रविरोध का ही मिल रहा है। इस गैंग की जड़ें इतनी मजबूत है कि उन्हें उखाड़ना मुश्किल ही नहीं लगभग नामुमकिन है, वोट बैंक की राजनीति उस पर विदेशी बेतहाशा पैसा उसपर मीडिया और खरीदे हुए एजेंट और उसके उसपर भी जातिवादी जनता... यह सभी तत्व मिलकर इस अलगाववादी विचारधारा के लिए खाद और पानी का काम करते हैं...
मित्रों अलगाववाद एक प्रकार के नशे के जैसा होता है जो अफीम की तरह फैलता है, इसके रोगी को पता भी नहीं चलता कि वह बीमार है। इसके रोगी को इस नशे की आदत हो जाती है और उसे रोज रोज थोड़ा नशा करना ज़रूरी हो जाता है। नशा न मिलने पर उसे अस्तित्व पर संकट सा लगने लगता है सो वह किसी एनजीओ के बहाने तो कभी अपने देश की धर्म और संस्कृति को गाली देता हुआ कभी नक्सलवाद को तो कभी आतंकवाद को भी जस्टिफाई करता है। धीरे धीरे उसे राष्ट्रवाद और देश का हित बौनी बातें लगने लगती हैं और वह इसी आनंद में मौज लेता रहता है। कितने ही मास्टर, यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर, हमारे टैक्स पर मौज लेने वाले सरकारी कर्मचारी, विशेषज्ञ, कई तटस्थ रहने वाले जाने माने ब्लॉगर (जी बिल्कुल) इस नशे के शिकार हैं।
आप खुद ही देखिये न यह लोग मोदी को गालियाँ बकने की लत में देशद्रोह को भी जस्टिफाई कर देते हैं सो इसका कोई इलाज़ है भी नहीं... जब तक देश की जनता में जातिवाद रहेगा, लालू मुलायम और केजरीवाल जैसे लोग फलते फूलते रहेंगे... जब तक ऐसे नेता रहेंगे अलगाववाद देशद्रोही सोच ज़िंदा रहेगी... ऐसे लोकतंत्र जिसमे जनता ही जातिवादी हो उसको परिपक्व मैं तो नहीं कह सकता... बाकी जो है सो हइए है...
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ये कैसा धर्म है जो इतना डरा हुआ है... जिसे हर बात-बेबात पर खतरा दिखाई देने लगता है ?
किताब, बादल, संगीत और मूड...
अर्थ बोलते हैं जब !
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जयपुर की सैर == भाग 6 ( Jipur ki sair = bhag 6 )
बेटी
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सच और सटीक जैसे जब तक सूरज चाँद रहेगा मेरे (सबके अपने अपने अलग) आका तेरा नाम रहेगा और आका नहीं रहेगा तो फिर किसका यहाँ खुद का क्या रहेगा । बहस जारी रहनी चाहिये । सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आलेख. आभार
जवाब देंहटाएंBehatreen prastuti......
जवाब देंहटाएंविचारशील सामयिक लेख के साथ सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंझा जी देशद्रोह की परिभाषा जानते हैं?
जवाब देंहटाएंबुलेटीन बढ़िया है |मेरी रचना बेटी शामिल करने के लिए आभार सर |
जवाब देंहटाएंबदलते संस्कार यहाँ पर देख ख़ुशी हुई ..आभार के साथ बधाई बढ़िया लिंक्स उपलब्ध करवाने के लिए _/\_
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