Pages

शनिवार, 2 जुलाई 2016

हर बार खूबसूरत परिवर्तन है




घुप्प अँधेरा 
साँयें साँयें दिमाग
अनसुनी आवाज़ें
मूक वाणी ....
माना दिल पर बोझ है
पर यहीं से हर बार खूबसूरत परिवर्तन है


एक रात तन्हाई संग
छत पर टहलने निकली
तो देखा आसमान के आँगन में 
चाँद का अचार रखा था
माँ उसे उठाना भूल गई थी
तो तारे उस पर लग गए थे
मैं उसे उठाकर ले आई
आँसुओं से धोया
और सपने के छज्जे पर रख दिया
जब कभी दोपहर बेस्वाद हो जाती थी
चाँद का अचार चख लेती थी
कभी कविता की रोटी पर चुपड़ लेती थी
कभी कहानी में उसका मसाला मल लेती थी
बहुत दिन बीत गए
चाँद का अचार खत्म हो गया
माँ भी नहीं रही
बेस्वाद-सी दोपहरें अब भी है
मीठी-सी शाम वो मज़ा नहीं देती
आज भी अकसर तन्हाई के संग
छत पर टहलने निकलती हूँ
तो याद आती है माँ
और चाँद का अचार......

कुछ एहसास: रो लो पुरुषो , जी भर के रो लो

2 टिप्‍पणियां:

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!