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गुरुवार, 9 जून 2016

सोशल मीडिया का अनुशासन

सभी मित्रों को देव बाबा की राम राम, आज न्यूयॉर्क में बारिश का मौसम था और ऐसे मौसम में बूँदों की टिप टिप के बीच चाय पकौड़ों का दौर चला। हमारे एक मित्र सपरिवार घर आये और फिर बातचीत के लम्बे सिलसिले के बाद गंभीर सोच में पड़ गया। आइये इस चिंतन से आपको भी अवगत कराता हूँ....

हम सभी लोग आजकल एक अजीब से दौर से गुज़र रहे हैं, आज कल तकनीक से लोग पास आये हैं और ठीक उसी समय इसी तकनीक ने लोगों को दूर भी किया है। यदि समझना मुश्किल हो रहा हो तो फिर एक अजीब सा किस्सा है सुनिए। कोई भी दो पात्र चुनिये, नाम हैं जो मन करे रख लीजिये क्योंकि यह दोनों ही पात्र अपने हर घर में हैं। बहरहाल शर्मा जी और उनकी पत्नी दोनों ही सोशल मीडिया में बहुत सक्रिय हैं, दोनों के जबरदस्त फैन फालोवर हैं और वह दोनों ही इसी सोशल मीडिया के ज़रिये मिले, फिर चैटिंग हुई, फिर मुलाकातों का सिलसिला कई वर्षों तक चला और फिर वैवाहिक सम्बन्ध में दोनों बंध गए। शुरूआती समय में सब कुछ किसी आदर्श परिवार जैसा ही रहा लेकिन धीरे धीरे स्थिति बदलने लगी। शर्माजी जब देखो तब इसी सोशल मीडिया में घुसे रहते, कभी पुर्तगाल के किसी दोस्त को ट्रैवेल प्लान समझाते, तो गुवाहाटी के किसी दोस्त को निवेश का नुस्खा। उनकी पत्नी को बड़ी चिढ़न होती कि शर्मा जी के पास रविवार की शाम को भी चाय साथ पीते समय इस मोबाइल से चिपके रहने की क्या ज़रूरत है। किचन में काम करते समय यदि कोई सलाह लेनी हो तो आवाज़ पर कोई उत्तर नहीं, बच्चे को लेकर कोई विमर्श करना हो तो भी समय का अभाव, पूरा समय फालतू की टिपर पिटर में जा रहा है। धीरे धीरे यह चिढ बढ़ने लगी और शर्मा जी का मोबाइल उनकी पत्नी को किसी सौत की तरह लगता था। कुछ दिनों के बाद शर्मा जी की पत्नी जो खुद ही सोशल मीडिया की चैम्पियन थीं वह अब सबसे किनारा करके खुद को परिवार में व्यस्त रखने लगीं। मैंने यूँ ही एक दिन उनसे बात की तो पाया कि यदि शर्माजी को कोई बात बतानी है तो डाइनिंग टेबल पर भी बोल कर कहने की जगह उनको व्हाट्सप्प पर भेजिए तो जल्दी उत्तर देंगे। अब आप ही बताइये कि मैं क्या करूँ। 

शर्मा जी का परिवार मेरे लिए बहुत घनिष्ठ था सो मुझे लगा इस विषय पर कोई ब्लॉग पोस्ट लिखना शायद अधिक श्रेयस्कर होगा। 

मित्रों हम सभी आजकल की आपाधापी में भी सोशल मीडिया पर अत्यधिक सक्रिय हैं और यह फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम ने यकीनन सूचना के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी है। यहाँ समस्या यह सोशल मीडिया की साइट्स नहीं बल्कि हमारा उनके प्रति रवैया है। यह ज़िन्दगी का हिस्सा हो सकते हैं लेकिन कितना महत्त्व देना है और उनसे कितना संभलकर रहना है यह बहुत ज़रूरी है। जब तक आप उसे चला रहे हैं ठीक है लेकिन यदि वह आपको चला रहा है तब समझिए खतरे की घंटी है। 

क्या आप दिन रात मोबाइल से चिपके रहते हैं यहाँ तक की सोते समय भी मोबाइल अपने सिराहने रखते हैं? यदि हाँ तो फिर समझिए सलाह नंबर-1 की मोबाइल को दूर रखिये। मैं इस तरीके को बहुत अचूक मानता हूँ क्योंकि सुबह का अलार्म बजने पर मुझे उठना ही पड़ता है। इससे समय पर उठ जाने पर योग, व्यायाम और तैयार होने का समय भी मिल जाता है। 

हर मैसेज और सवाल या स्टेटस पर तुरंत उत्तर देना ज़रूरी नहीं और आपके परिवार का समय अधिक जरुरी है, बच्चे के साथ खेलिए, बाहर जाइये कोई शौक को पूरा कीजिये जैसे कि फोटोग्राफी, कोई वाद्ययंत्र बजाना सीखिए कुछ भी कीजिये लेकिन खुद को किसी सकारात्मक चीज में व्यस्त कीजिये।
जहाँ तक हो सके मोबाइल के इस्तेमाल में कोई खुद पर ही अनुशासन रखिये, याद रखिये बड़ा होने पर आपका बच्चा यह कभी नहीं बोलेगा की तुमने जबरदस्त स्टेटस लिखे थे लेकिन वह यह ज़रूर बोलेगा कि पापा तुम्हारे पास तो मेरे लिए समय ही नहीं था। ठीक यही हाल बुजुर्गों के प्रति रवैये के लिए भी है। मूर्खता की ऐसी हद है कि साल भर अपने बाप का हाल न पूछने वाला बेटा फादर्स-डे की फोटो शेयर करता है और उसे हज़ारो लाइक मिलते हैं। समझने की बात है कि सेव-दी-टाइगर की फोटो शेयर करने से जंगल में शेर सुरक्षित नहीं हो जाते, ग्लोबल वार्मिंग की फोटो शेयर करने से ग्लेसियर पिघलना बंद नहीं होते। 

समझ कर देखिये, शायद थोड़े से सोशल मीडिया के अनुशासन से आपकी ज़िन्दगी थोड़ी संभल जाए। 

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4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सुझाव के साथ एक सुन्दर बुलेटिन ।

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  2. सच बहुत से लोगों के सर पर सोशल मीडिया का भूत ज्यादा ही सवार रहता है, जो पारिवारिक दृष्टि से कतई उचित नहीं है।
    चिंतनशील विमर्श के साथ सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति आभार!

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  3. शानदार व शिक्षाप्रद आलेख
    पढ़ी तो कुछ भी नहीं
    लिंक लिए जा रहा हूँ
    हाँ..उड़ता पंजाब की एक झलक दिखी मुझे
    शब्द नगरी में
    पढ़ूँगा उसे अभी
    सादर

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  4. एक सार्थक बुलेटिन ... आभार देव बाबू !!

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