मैं एक पेंटर की ब्रश हूँ
जिसे वह अपनी मर्ज़ी के रंगों से चुपड़ देता है
और अपनी मर्ज़ी से कागज़, कैनवस रंग देता है
पेंटर !
समझता ही नहीं
दराज़ में रखा मैं
टेबल पर पड़ा मैं
कमरे में आती जाती गतिविधियों की
त्वरित भगिमाओं को उकेरना चाहता हूँ
मुझे कुछ अलग किस्म के रंग चाहिए
जिससे मैं कुछ अनकही
अनखींची रेखाओं को
प्राणप्रतिष्ठित कर सकूँ
मेरा पेंटर भी अनसुने को समझे
और फिर कुछ हटकर बनाए
मुझे ऐतिहासिक बना दे ...
Kash painter aisa kuch kare.
जवाब देंहटाएंब्रश की वेदना
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंअच्छे अच्छे लिंक थे !
जवाब देंहटाएंअच्छे अच्छे लिंक थे !
जवाब देंहटाएंthank you for this post anmol vachan ke leye aap http://www.99hindi.com ko deke..
जवाब देंहटाएंwww.99hindi.com
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
ब्रश ने कैनवास बहुत सुन्दर सजाया है
जवाब देंहटाएंबधाई
होनी पर किसी का वश नहीं चलता। क्षतिपूर्तिअसंभव है।
जवाब देंहटाएंहर कलाकार के अंदर की छिपी हुई टीस... अनवरत खोज और रश्मि दी की कलम!! शानदार!
जवाब देंहटाएंआप ने ब्रश की वेदना को शब्द दे दिये |
जवाब देंहटाएंVery nice...
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