सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
सुनील दत्त ( अंग्रेजी: Sunil Dutt, पंजाबी: ਸੁਨੀਲ ਦੱਤ,जन्म: 6 जून 1929, मृत्यु: 25 मई 2005 ), जिनका असली नाम बलराज दत्त था, भारतीय फिल्मों के विख्यात अभिनेता, निर्माता व निर्देशक थे, जिन्होंने कुछ पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय राजनीति में भी सार्थक भूमिका निभायी। मनमोहन सिंह की सरकार में 2004 से 2005 तक वे खेल एवं युवा मामलों के कैबिनेट मन्त्री रहे। उनके पुत्र संजय दत्त भी फिल्म अभिनेता हैं।
उन्होंने 1984 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुम्बई उत्तर पश्चिम लोक सभा सीट से चुनाव जीता और सांसद बने। वे यहाँ से लगातार पाँच बार चुने जाते रहे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी प्रिया दत्त ने अपने पिता से विरासत में मिली वह सीट जीत ली। भारत सरकार ने 1968 में उन्हें पद्म श्री सम्मान प्रदान किया। इसके अतिरिक्त वे बम्बई के शेरिफ़ भी चुने गये।
उनके कैरियर की शुरुआत रेडियो सीलोन पर, जो कि दक्षिणी एशिया का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन है, एक उद्घोषक के रूप में हुई जहाँ वे बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय करने की ठानी और बम्बई आ गये। 1955 मे बनी "रेलवे स्टेशन" उनकी पहली फ़िल्म थी पर 1957 की 'मदर इंडिया' ने उन्हें बालीवुड का फिल्म स्टार बना दिया। डकैतों के जीवन पर बनी उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म मुझे जीने दो ने वर्ष 1964 काफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीता। उसके दो ही वर्ष बाद 1966 में खानदान फिल्म के लिये उन्हें फिर से फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार प्राप्त हुआ।
1957 में बनी महबूब खान की फिल्म मदर इण्डिया में शूटिंग के वक़्त लगी आग से नरगिस को बचाते हुए सुनील दत्त बुरी तरह जल गये थे। इस घटना से प्रभावित होकर नरगिस की माँ ने अपनी बेटी का विवाह 11 मार्च 1958 को सुनील दत्त से कर दिया।
1950 के आखिरी वर्षों से लेकर 1960 के दशक में उन्होंने हिन्दी फिल्म जगत को कई बेहतरीन फिल्में दीं जिनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), गुमराह (1963), वक़्त (1965), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) और हमराज़ (1967) प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं।
फिल्म "मुझे जीने दो" में उनके बेहतरीन अभिनय ने उन्हें बहुत लोकप्रिय स्टार बना दिया ।
सुनील दत्त जी का निधन 25 मई, 2005 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था।
आज सुनील दत्त जी की 87वीं जयंती पर हिंदी ब्लॉग जगत और ब्लॉग बुलेटिन उन्हें शत शत नमन करते है।
अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर...
पृथ्वी पर जीवन का उद्भव कैसे हुआ ?
नॉकआउट, जीवन के कारखाने में..
आप्रेशन ब्लु-स्टार की धुंधली यादें...
पेड़ों को प्रणाम : देवेन्द्र मेवाड़ी
कला, साहित्य और राजनीति
पूछ लेते तो मुझे हार्ट अटेक नहीं होता
बिना अदालत गए बढ़वाया दुकानदार से 19 साल पुराना किराया
रूद्र अब की बाढ़ में इस देश का कूड़ा गहें - सतीश सक्सेना
तेरी छत से चाँद निकलना जारी है
" जाने कहाँ गुम हो जाती हैं बेटियां .."
विश्व पर्यावरण दिवस चाँद पर मनाने जाने को दिल मचल रहा है
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
सुनील दत्त ( अंग्रेजी: Sunil Dutt, पंजाबी: ਸੁਨੀਲ ਦੱਤ,जन्म: 6 जून 1929, मृत्यु: 25 मई 2005 ), जिनका असली नाम बलराज दत्त था, भारतीय फिल्मों के विख्यात अभिनेता, निर्माता व निर्देशक थे, जिन्होंने कुछ पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने भारतीय राजनीति में भी सार्थक भूमिका निभायी। मनमोहन सिंह की सरकार में 2004 से 2005 तक वे खेल एवं युवा मामलों के कैबिनेट मन्त्री रहे। उनके पुत्र संजय दत्त भी फिल्म अभिनेता हैं।
उन्होंने 1984 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुम्बई उत्तर पश्चिम लोक सभा सीट से चुनाव जीता और सांसद बने। वे यहाँ से लगातार पाँच बार चुने जाते रहे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी बेटी प्रिया दत्त ने अपने पिता से विरासत में मिली वह सीट जीत ली। भारत सरकार ने 1968 में उन्हें पद्म श्री सम्मान प्रदान किया। इसके अतिरिक्त वे बम्बई के शेरिफ़ भी चुने गये।
उनके कैरियर की शुरुआत रेडियो सीलोन पर, जो कि दक्षिणी एशिया का सबसे पुराना रेडियो स्टेशन है, एक उद्घोषक के रूप में हुई जहाँ वे बहुत लोकप्रिय हुए। इसके बाद उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों में अभिनय करने की ठानी और बम्बई आ गये। 1955 मे बनी "रेलवे स्टेशन" उनकी पहली फ़िल्म थी पर 1957 की 'मदर इंडिया' ने उन्हें बालीवुड का फिल्म स्टार बना दिया। डकैतों के जीवन पर बनी उनकी सबसे बेहतरीन फिल्म मुझे जीने दो ने वर्ष 1964 काफ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीता। उसके दो ही वर्ष बाद 1966 में खानदान फिल्म के लिये उन्हें फिर से फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार प्राप्त हुआ।
1957 में बनी महबूब खान की फिल्म मदर इण्डिया में शूटिंग के वक़्त लगी आग से नरगिस को बचाते हुए सुनील दत्त बुरी तरह जल गये थे। इस घटना से प्रभावित होकर नरगिस की माँ ने अपनी बेटी का विवाह 11 मार्च 1958 को सुनील दत्त से कर दिया।
1950 के आखिरी वर्षों से लेकर 1960 के दशक में उन्होंने हिन्दी फिल्म जगत को कई बेहतरीन फिल्में दीं जिनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), गुमराह (1963), वक़्त (1965), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) और हमराज़ (1967) प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं।
फिल्म "मुझे जीने दो" में उनके बेहतरीन अभिनय ने उन्हें बहुत लोकप्रिय स्टार बना दिया ।
सुनील दत्त जी का निधन 25 मई, 2005 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था।
आज सुनील दत्त जी की 87वीं जयंती पर हिंदी ब्लॉग जगत और ब्लॉग बुलेटिन उन्हें शत शत नमन करते है।
अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर...
पृथ्वी पर जीवन का उद्भव कैसे हुआ ?
नॉकआउट, जीवन के कारखाने में..
आप्रेशन ब्लु-स्टार की धुंधली यादें...
पेड़ों को प्रणाम : देवेन्द्र मेवाड़ी
कला, साहित्य और राजनीति
पूछ लेते तो मुझे हार्ट अटेक नहीं होता
बिना अदालत गए बढ़वाया दुकानदार से 19 साल पुराना किराया
रूद्र अब की बाढ़ में इस देश का कूड़ा गहें - सतीश सक्सेना
तेरी छत से चाँद निकलना जारी है
" जाने कहाँ गुम हो जाती हैं बेटियां .."
विश्व पर्यावरण दिवस चाँद पर मनाने जाने को दिल मचल रहा है
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
अच्छे लिंक्स हैं . धन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंसुनील दत्त की सत्तासीवींं जयंती पर श्रद्धा नमन । सुन्दर सोमवारीय बुलेटिन प्रस्तुति । आभार हर्षवर्धन 'उलूक' के सूत्र 'विश्व पर्यावरण दिवस चाँद पर मनाने जाने को दिल मचल रहा है' को जगह देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंकई प्रकार की रचनाओं को एक ही स्थाथान पर पाकर समय की बचत भी हो गई और अच्छी रचनाओं से आनंद की प्राप्ति हुई। बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!
दत्त साहब को श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंसुनील दत्त जी की 87वीं जयंती पर उन्हें शत शत नमन।
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