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बुधवार, 15 जून 2016

सुरैया और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
सुरैया (जन्म: 15 जून, 1929 - मृत्यु: 31 जनवरी, 2004) पूरा नाम सुरैया जमाल शेख़, हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री और गायिका थीं। 40वें और 50वें दशक में इन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपना योगदान दिया। अदाओं में नज़ाकत, गायकी में नफ़ासत की मलिका सुरैया जमाल शेख़ ने अपने हुस्न और हुनर से हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक नई इबारत लिखी। वो पास रहें या दूर रहें, नुक़्ताचीं है ग़मे दिल, और दिल ए नादां तुझे हुआ क्या है जैसे गीत सुनकर आज भी जहन में सुरैया की तस्वीर उभर आती है।

15 जून, 1929 को गुजरांवाला, पंजाब (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सुरैया अपने माता पिता की इकलौती संतान थीं। नाज़ों से पली सुरैया ने हालांकि संगीत की शिक्षा नहीं ली थी लेकिन आगे चलकर उनकी पहचान एक बेहतरीन अदाकारा के साथ एक अच्छी गायिका के रूप में भी बनी। सुरैया ने अपने अभिनय और गायकी से हर कदम पर खुद को साबित किया है।

सुरैया के फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत बड़े रोचक तरीक़े से हुई। गुजरे ज़माने के मशहूर खलनायक जहूर सुरैया के चाचा थे और उनकी वजह से 1937 में उन्हें फ़िल्म 'उसने क्या सोचा' में पहली बार बाल कलाकार के रूप में भूमिका मिली।1941 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान वह मोहन स्टूडियो में फ़िल्म 'ताजमहल' की शूटिंग देखने गईं तो निर्देशक नानूभाई वकील की नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने सुरैया को एक ही नज़र में मुमताज़ महल के बचपन के रोल के लिए चुन लिया। इसी तरह संगीतकार नौशाद ने भी जब पहली बार ऑल इंडिया रेडियो पर सुरैया की आवाज़ सुनी और उन्हें फ़िल्म 'शारदा' में गवाया। 1947 में भारत की आज़ादी के बादनूरजहाँ और खुर्शीद बानो ने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली, लेकिन सुरैया यहीं रहीं।

देवानंद और सुरैया
एक वक़्त था, जब रोमांटिक हीरो देव आनंद सुरैया के दीवाने हुआ करते थे। लेकिन अंतत: यह जोड़ी वास्तविक जीवन में जोड़ी नहीं पाई। वजह थी सुरैया की दादी, जिन्हें देव साहब पसंद नहीं थे। मगर सुरैया ने भी अपने जीवन में देव साहब की जगह किसी और को नहीं आने दिया। ताउम्र उन्होंने शादी नहीं की और मुंबई के मरीनलाइन में स्थित अपने फ्लैट में अकेले ही ज़िंदगी जीती रहीं। देव आनंद के साथ उनकी फ़िल्में 'जीत' (1949) और 'दो सितारे' (1951) ख़ास रहीं। ये फ़िल्में इसलिए भी यादगार रहीं क्योंकि फ़िल्म 'जीत' के सेट पर ही देव आनंद ने सुरैया से अपने प्रेम का इजहार किया था, और 'दो सितारे' इस जोड़ी की आख़िरी फ़िल्म थी। खुद देव आनंद ने अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में सुरैया के साथ अपने रिश्ते की बात कबूली है। वह लिखते हैं कि सुरैया की आंखें बहुत ख़ूबसूरत थीं। वह बड़ी गायिका भी थीं। हां, मैंने उनसे प्यार किया था। इसे मैं अपने जीवन का पहला मासूम प्यार कहना चाहूंगा।

अभिनय के अलावा सुरैया ने कई यादगार गीत गाए, जो अब भी काफ़ी लोकप्रिय है। इन गीतों में, सोचा था क्या मैं दिल में दर्द बसा लाई, तेरे नैनों ने चोरी किया, ओ दूर जाने वाले, वो पास रहे या दूर रहे, तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी, मुरली वाले मुरली बजा आदि शामिल हैं।

31 जनवरी, 2004 को सुरैया दुनिया को अलविदा कह गईं। संगीत का महत्व तो हमारे जीवन में हर पल रहेगा लेकिन सार्थक और मधुर गीतों की अगर बात आएगी तो सुरैया का नाम जरूर आएगा।

[ जानकारी स्त्रोत - भारतकोश ~ सुरैया ]

आज महान कलाकार सुरैया जी के 87वें जन्मदिवस के अवसर पर हिंदी ब्लॉगजगत और ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें स्मरण करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।

अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर...

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आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर...अभिनन्दन।।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया बुलेटिन हर्षवर्धन। स्वरों की मलिका सुरैया के 87वें जन्मदिन पर श्रद्धांंजलि। आभार 'उलूक'के सूत्र 'क्या और क्यों नहीं कितनी बार बजाई बताना जरूरी होता है' को आज के बुलेटिन मेंं जगह देने के लिये।

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  2. सुरैया जी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी प्रस्तुति के साथ बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
    सुरैया जी को हार्दिक श्रद्धासुमन!

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  3. सुरैया के वि‍षय में बहुत अच्‍छी जानकारी दी आपने। मेरी रचना को शामि‍ल करने का शुक्रि‍या।

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  4. सुरैया के बारे में काफी पढ़ा है.....मीडिया में रहने की वजह से बचपन से उनकी मौत होने तक लगातार ..

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