उसने आदतन कहा
सुबह हो गई , क्या करती हो
मैंने कहा-
'सूरज से बातें'...
उसने कहा
अच्छा, क्या बातें कीं
...
मैंने बताया
'सूरज ने कहा
मैं तुझमें हूँ
तुम्हारी दृष्टि
मेरा गोला आकर है
तुम्हारी सोच मेरा प्रकाश है
तुम्हारा जीवन मंथन
मेरे इर्द गिर्द घूमते
अलग अलग रंग हैं ...'
यह मेरा अहम् नहीं
सूरज का विश्वास है
सूर्य कवच है ...
नज़रें उठाओ और सुनो
यही वह तुमसे भी कहेगा
विश्वास रखो ...
गर तुम हाँ कहो
तो ये गेरूआ आवरण उतार फेंकू
कि रूह में फिर
रंगों का तिलिस्म जागने सा लगा है ...!!!
तो ये गेरूआ आवरण उतार फेंकू
कि रूह में फिर
रंगों का तिलिस्म जागने सा लगा है ...!!!
ज़िंदगी तो मिल जाती हैं
सबको चाही या अनचाही
बीच में मिल जाते हैं
ना जाने कितने अनजान राही
सबको चाही या अनचाही
बीच में मिल जाते हैं
ना जाने कितने अनजान राही
बितातें हैं कुछ पल वो
अपनी ज़िंदगी के साथ साथ
कुछ मीठे- कड़वे पलो की सोगाते दे जाते हैं
अपनी ज़िंदगी के साथ साथ
कुछ मीठे- कड़वे पलो की सोगाते दे जाते हैं
यह ज़िंदगी का खेल
बस वक़्त के साथ यूँ ही चलता जाता है
बचपन जवानी में ,जवानी को बुढ़ापे में तब्दील कर जाता है
बस वक़्त के साथ यूँ ही चलता जाता है
बचपन जवानी में ,जवानी को बुढ़ापे में तब्दील कर जाता है
सब अपने सुख दुख समेटे
इस ज़िंदगी को बस जीते जाते हैं
बह जाते हैं यह रेत से गीले पल फिर कब हाथ आते हैं !!
इस ज़िंदगी को बस जीते जाते हैं
बह जाते हैं यह रेत से गीले पल फिर कब हाथ आते हैं !!
सुन्दर रविवारीय बुलेटिन ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन रश्मि दी !!
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