मैं .... वह एहसास
जो तुम्हें तुम्हारी पूर्णता का एहसास दे
मैं .... सागर की वह लहरें
जो तुम्हारे व्यक्तित्व की नकारात्मकता को बहा ले जाए
मैं .... पाषाण का वह अंश
जो तुम्हें अटूट बनाए
मैं .... संजीवनी
तुम जीना सीखो
अपने गंतव्य पर निगाह रखो
पीछे मुड़कर मेरी व्याख्या मत करो
तुम्हारी जीत मेरी परिभाषा
मेरा विस्तार
मेरा सारांश है
प्रियंकाभिलाषी..: 'मीठे एहसास'..
सूरज अपने प्रकाश का विज्ञापन नहीं देता
चन्द्रमा के पास भी चांदनी का प्रमाणपत्र नहीं होता!
बादल कुछ पल, कुछ घंटे , कुछ दिन ही
ढक सकते हैं ,रोक सकते हैं
प्रकाश को , चांदनी को ...
बादल के छंटते ही नजर आ जाते हैं
अपनी पूर्ण आभा के साथ पूर्ववत!
टिमटिमाते तारे भी कम नहीं जगमगाते
गहन अँधेरे में जुगनू की चमक भी कहाँ छिपती है!
जो होता है वह नजर आ ही जाता है देर -सवेर
बदनियती की परते उतरते ही !
(या मुखौटों के खोल उतरते ही )
कई रिश्तों को दरकते देखा है जीवन में ,
धीमे धीमे पुराने जर्जर मकान की तरह ।
जैसे खून भी सर्द होकर जम गया रगों में ,
आग सुलगती रही किसी श्मशान की तरह ।
धीमे धीमे पुराने जर्जर मकान की तरह ।
जैसे खून भी सर्द होकर जम गया रगों में ,
आग सुलगती रही किसी श्मशान की तरह ।
उस मैं का एक और आयाम
जवाब देंहटाएंजिसका ओर नहीं छोर नहीं ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार 'उलूक' के सूत्र 'वट सावित्री' को जगह देने के लिये ।
जीवन के अनुभवों को समेटते चलें तो कितने सृजन हो जाते हैं । अपने या औरों के शब्द कोताही नहीं करते ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंइस एहसास में विश्वास है!!
जवाब देंहटाएंआभार!
लक्ष्य हमेशा निगाह मे रहना ही चाहिए !!
जवाब देंहटाएं