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रविवार, 7 फ़रवरी 2016

बेवक़्त अगर जाऊँगा

एगो आदमी बेचारा भोरे-भोरे काम पर निकल जाता था अऊर रात को भी बहुत देरी से घर लौटता था. उसको कभी भी अपना बाल-बच्चा को देखना, ऊ लोग से बात करना नसीब नहीं होता था. लोग बाग जब उसको पूछता कि तुमको केतना बच्चा है तो बोलता तीन. मगर समस्या तब होता था जब लोग अगिला सवाल पूछता था, “कितने बड़े हैं बच्चे तुम्हारे?”
बेचारा न उमर बता पाता था, न ऊँचाई. दुनो हाथ को फैलाकर बताना पड़ता था कि एगो एतना बड़ा है, दोसरा एतना बड़ा.

एही नहीं, एक रोज जब ऊ घर पर छुट्टी में था, त बच्चा लोग उसको सन्देह के नजर से देख रहा था. का करे बच्चा लोग. पुराना फैमिली एलबम लेकर माय के पास गया अऊर पूछा, “माई! ई फोटू में तुमरे कन्धा पर हाथ धरकर जो इस्माट आदमी है, ऊ कौन है?”
माय बेचारी लजाते हुये बोली, “दुर पगला! अपने पप्पा को नहीं पहचानते हो! ई तुमरे पप्पा ना है!”
अब चौंकने का बारी लड़िका का था. बोला, “ए माई! त ई बुड्ढा कऊन है जो एतवार के रोज घर में आता है अऊर हमलोग के साथे रहता है?”
पापी पेट के लिये हाड़ तोड़ मेहनत अऊर गरीबी गुलज़ार साहब का कबिता त नहिंये है कि माय बेचारी तुरते एगो नज़्म गढ़ दे

तुझसे नाराज़ नहीं, ज़िन्दगी, हैरान हूँ मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं!!

त भाई लोग! हम सलिल वर्मा उर्फ़ चला बिहारी आज आपके सामने हाजिर हैं. ई पचास का पहाड़ा छोड़कर, यदा कदा परगट होने का परम्परा तोड़कर आ गये कि देखें लोग पहचानता है कि भुला गया. नौकरी के कारन तड़ीपार होना पड़ा अऊर अब हुकुम हुआ है कि हर हफ्ते हाजिरी लगाना होगा थाना में. देखिये कहाँ तक सम्भव हो पाता है.

तो आज के लिये बस एतना ही.. इसी को इंट्रोडक्सन मानिये अऊर अगिला एपिसोड में कुछ नया लेकर अटेण्डेंस लगाते हैं. ई त हमरा घर जैसा है अऊर आप लोग परिबार के माफिक. बशीर साहब का एगो शे’र याद आ गया, त उसी के साथ आपके रजिस्टर पर अंगूठा लगाकर बिदा लेते हैं:

बेवक्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे,
एक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा!

- सलिल वर्मा 
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विश्वास, मान्यता और असहिष्णुता

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तेरी तस्वीर.

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या ऐंट्री ली है :)
    आते रहियेगा कम भी आयेंगे तो आपको कौन भूल सकता है सलिल जी ।
    बहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति ।

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  2. बहुत दिन से आये हैं .स्वागत है .आज के बुलेटिन में 'आभानेरी' शामिल करने के लिए बहुत आभार

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  3. Abhar mujhe bhi is blog bulletin me shamil karane ke liye.....hardik shubhkamnayen....
    Hemant kumar

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  4. हृदय से आभार हमारे ब्लॉग को जगह देने के लिए ,
    सारे लिंक बहुत उम्दा हैं |

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  5. आपका आना हमेशा सुखद रहा है ... इसी लिए अब आपको नियमित आना है ... प्रणाम दादा |

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  6. क्या कहूँ उस शख्स से जो पूछता है
    गर इज़ाज़त हो तो मैं आ जाऊँ ... "
    जानता है वो भी इस बात को अच्छी तरह
    उसकी आहट का इंतज़ार दिलों में टहलता ही रहता है

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