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गुरुवार, 7 जनवरी 2016

पठानकोट और मालदा जैसा अब स्वीकार नहीं - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार दोस्तो,
वर्ष २०१६ की अपनी पहली बुलेटिन के साथ आपका मित्र उपस्थित है. ‘आप सबको नववर्ष मंगलमय हो’ कहने की हिम्मत इस समय हममें नहीं है. मात्र एक सप्ताह के भीतर ही देश में भूचाल सा आ गया. पठानकोट की आतंकी घटना ने जहाँ एक तरफ हमारी सुरक्षा व्यवस्था को आईना दिखाया है वहीं पाकिस्तान के साथ शांति-वार्ता जैसी पहल की आशंका को भी चकनाचूर सा किया है. ऐसा इसलिए क्योंकि चंद रोज पहले ही देश के प्रधानमंत्री ने एकाएक पाकिस्तान की यात्रा करके सबको भौचक कर दिया था. उनकी उस औचक यात्रा में नरेन्द्र मोदी जितनी देर पाकिस्तान में ठहरे, कहीं से भी किसी आतंकी घटना की खबर नहीं आई, कहीं भी कोई बम नहीं फूटा. इस घटनाक्रम ने सम्पूर्ण विश्व में एक सन्देश भी प्रसारित किया था कि यदि पाकिस्तान की सेना, वहाँ के सत्ताधारी यदि चाह लें तो कोई भी आतंकी संगठन एक बम धमाका भी नहीं कर सकता है. ऐसे में यात्रा के तत्काल बाद ही पठानकोट पर आतंकी हमला सारी कहानी स्पष्ट करता है.

इस बाहरी हमले के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में मालदा में हुए हिंसात्मक प्रदर्शन ने भी हमें डराया है. ये समझने वाली बात है कि कल को देश में यदि कोई बड़ा आतंकी हमला हो जाये और उसी समय देश में कई-कई जगहों पर मालदा जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाएँ तो सुरक्षा, शांति व्यवस्था को संभालना किसी भी सरकार के लिए परेशानी का सबब बन जाएगी. इससे भी भयावह स्थिति ये रही कि उत्तर प्रदेश के दादरी में अख़लाक़ के साथ हुई घटना को मीडिया ने जिस तरह से वैश्विक स्तर पर उभार दिया था; देश के कथित धर्मनिरपेक्ष लोगों ने पुरस्कार/सम्मान वापसी का घृणास्पद कार्य करना शुरू कर दिया था; गैर-भाजपाई राजनैतिक दलों ने जिस तरह से वैमनष्यतापूर्ण बयानबाज़ी की थी वे सब मालदा की हिंसा पर शांति धारण किये रहे. तुष्टिकरण की नीति राजनीति से निकल कर अब समाज में, मीडिया में जिस तरह से फ़ैल रही है वो भविष्य के लिए घातक संकेत है.

फ़िलहाल तो पठानकोट का आतंकी हमला कई सवाल छोड़ गया; मालदा की साम्प्रदायिक हिंसा ने भी कई सवाल छोड़े हैं किन्तु अब इनको अनदेखा किया जाना राष्ट्रहित में नहीं होगा. सरकार के लिए जितना आवश्यक बाहरी आतंकी ताकतों से लड़ना है उससे कहीं अधिक आवश्यक आंतरिक ताकतों से निपटना भी है. ये आंतरिक आतंकी ताकतें अलग-अलग, नामालूम से स्वरूप में हमारे तंत्र के साथ मिली-जुली हैं और यही कारण है कि इनके द्वारा कभी पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये जाते हैं कभी पाकिस्तान के, कभी आईएसआईएस के झंडे फहराए जाते हैं, कभी भारत मुर्दाबाद का शोर उठाया जाता है, कभी तिरंगा जलाया जाता है. ऐसे में स्पष्ट रूप से संकेत स्वतः मिलता है कि अब शांति और ज्यादा देर तक नहीं, अब धैर्य बहुत समय तक नहीं.

पठानकोट में शहीद सैनिकों को, मालदा के हिंसात्मक प्रदर्शन में मारे गए मासूम नागरिकों को विनम्र श्रद्धांजलि सहित आज की बुलेटिन.

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नववर्ष के आरम्भ ने देशव्यापी इस संकट को देने के साथ ही हमारी एक मित्र को उसके परिवार के चार सदस्यों सहित छीन लेने का व्यक्तिगत दुःख भी दिया, उन सबको भी श्रद्धासुमन.

6 टिप्‍पणियां:

  1. चिंतनशील बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. आदरणीय डा. कुमारेन्द्र सिंह सेंगर जी! आपने महत्वपूर्ण ब्लॉग्स को एक जगह एकत्रित कर बहुत्त ही नेक काम किया है आपका यह प्रयास स्तुत्य है!

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  3. पठानकोट और मालदा किसकी निंदा करूं? पोस्ट को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने के लिए आभार

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