प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
एक हमारा देश, हमारा वेश,
हमारी कौम, हमारी मंज़िल,
हम किससे भयभीत ।
हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
प्रणाम |
आज ६८ वें सेना दिवस के मौके पर डा ॰ हरिवंशराय बच्चन की कविता यहाँ सांझा कर रहा हूँ !
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
एक हमारा देश, हमारा वेश,
हमारी कौम, हमारी मंज़िल,
हम किससे भयभीत ।
हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।
जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
- डा ॰ हरिवंशराय बच्चन
सादर आपका
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अब आज्ञा दीजिये ...
शिवम भाई..
जवाब देंहटाएंप्यारी रचनाएँ
सहजने योग्य
सादर
यशोदा
छायाचित्रकार को जगह देने के लिए धन्यवाद शिवम्
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएं६८ वें सेना दिवस एवं मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!
सुन्दर प्रस्तुति .... आभार
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बूम बूम बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंआप सब का बहुत बहुत आभार |
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