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गुरुवार, 14 जनवरी 2016

देश-गति के उत्तरायण में होने का इंतजार - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार दोस्तो,

मकर-संक्रांति पर्व की शुभकामनाओं सहित आज की बुलेटिन आपके समक्ष है. आज के दिन से ही सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, इसी से इस पर्व को मकर-संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति भी आरम्भ हो जाती है. शास्त्रों के अनुसार सूर्य के दक्षिणायन रहने को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है. संक्रांति का भावार्थ अवस्था-परिवर्तन से या फिर किसी स्थिति से गुजरने के रूप में भी लिया जाता है. इधर देखा जाये तो हमारा देश भी संक्रांति-काल से गुजर रहा है. परम्पराओं, संस्कारों की बात करें तो आधुनिक पीढ़ी अपने बने-बनाये नियम कानूनों, परम्पराओं को स्थापित करने की पक्षधर दिख रही है वहीं बुजुर्गवार पुरातन पीढ़ी के संस्कारों, भावों को क्रियान्वित करने पर जोर दे रहे हैं. पारिवारिकता की, सामाजिकता की अत्यंत प्राचीन विवाह संस्था भी संक्रांति-काल से गुजरती हुई संकट के दौर में है. लिव-इन-रिलेशन, समलैंगिकता, विवाहेतर सम्बन्ध, विवाह-पूर्व यौन सम्बन्ध आदि के चलते पति-पत्नी का आपसी विश्वास, प्रेम कहीं दरक सा रहा है. परिवार में, दोस्तों में, सहयोगियों में, समाज में अन्य लोगों में विश्वास, प्रेम, स्नेह, भाईचारा, सद्भाव, सहयोग आदि-आदि संक्रमित दौर में है, संकटग्रस्त है. रक्त-सम्बन्धियों के मध्य रिश्तों की गरिमा बरक़रार नहीं है, उम्र का ख्याल रखे बिना अनेकानेक कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है, इंसानियत का रूप विकृत होकर हैवानियत में परिवर्तित होता जा रहा है.
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परिवार की शांति, सुरक्षा, विश्वास खंडित हो रहा है तो देश की अखंडता, एकता, सद्भाव, भाईचारा आदि पर भी संक्रमण का दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है. बाहरी ताकतों के खतरे के साथ-साथ देश वर्तमान में अंदरूनी फिरकापरस्त ताकतों से भी जूझ रहा है. सीमा पर आतंकी हमले का जितना भय दिखता है उससे कहीं अधिक भय देश के अंदरूनी हिस्सों में आतंकी घटनाओं के होने का बना हुआ है. दिन-प्रतिदिन इस तरह के डर का बढ़ना, अराजक घटनाओं में वृद्धि होते जाना, किसी भी घटना पर अकारण धर्म-मजहब का मुखौटा लगा देना, सहिष्णुता-असहिष्णुता के नाम पर वैमनष्यता फैलाना, सब तरह से सुरक्षित लोगों का भी तुष्टिकरण के चलते जनता को बरगलाने-डराने वाले बयान देना आदि-आदि दर्शाता है कि सबकुछ सामान्य सा तो नहीं है. संक्रांति का ये दौर अत्यधिक भयावह है और इससे जल्द छुटकारा मिलता दूर-दूर तक दिखता नहीं है.
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भगवान भास्कर तो अपनी गति परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण में आ गए हैं अर्थात देवताओं के दिन, सकारात्मकता तो आरम्भ हो गई है. मन प्रश्न कर रहा है कि हमारा देश गति परिवर्तित करते हुए कब दक्षिणायन से उत्तरायण में आएगा? देश के, देशवासियों के दिन कब नकारात्मकता से सकारात्मकता में आयेंगे? आज की बुलेटिन का आनंद उठाते हुए ऐसे अनेकानेक प्रश्नों के उत्तर तलाशने का प्रयास कीजियेगा.

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अपना-पराया न करें / आलेख / दीपक आचार्य









10 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया बुलेटिन । मकर संक्रांति पर शुभकामनाऐं ।

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  2. पोस्ट की जगह देने के लिये आभार।

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  3. पोस्ट की जगह देने के लिये आभार।

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  4. सभी को मकर संक्रांति के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाऐं।
    बढ़िया बुलेटिन राजा साहब ... आभार आपका |

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  5. बहुत सुंदर बुलेटिन.मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.

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  6. बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
    सभी को मकर संक्रांति के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाऐं।

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  7. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार! मकर संक्रान्ति पर्व की शुभकामनाएँ!

    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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  8. मकर संक्रांति की शुभकामनाएं.
    सुन्दर सार्थक प्रस्तुति

    आभार

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