एहसासों के पुस्तकालय में बैठकर
करीने से खोलती हूँ ब्लॉग
कई परिचित-अपरिचित नाम
स्वतः बुदबुदाती हूँ - प्रतिभाओं की सच में कमी नहीं ...
आरसी चौहान
कलम
पंखों की उर्वर जमीन पर उगे कलम
तुम्हें मालूम है अपने पूर्वजों के कटे पंख
जिसने कर दिया कितनों को अजर- अमर
और नरकट तुम
बने रहे
नरकट के नरकट !
तुम्हारी नोंक को तलवार की माफिक
बनाया गया धारदार
तुम्हारे मुंह से उगलवाया गया
मोतियों के माफिक शब्द
मंचों से वाहवाही बटोरते रहे
लेखकगण
और बदले में तुम्हारी जीभ को
काटते रहे बार- बार
फिर भी तुम बने रहे निर्विकार
नरकट
तुम्हारे भाई बंधु
किरकिच और सरकण्डे
लुप्तप्राय हो गये हैं और
आज तुम्हारी हड्डियों की कलम
तो सपने में भी नहीं दीखती
तुम्हारी शक्ल - सूरत से बेहतर
कारखानों में बनते रहे
तुम्हारे विकल्प
कीबोर्ड और कम्प्यूटर तो भरने लगे उड़ान
और बेदखल होते रहे तुम
तो क्या हुआ ?
जादुई मुस्कान
घोलते हुए बोला नरकट
अब तुम नहीं बर्गला सकते हमें
हैं तो हमारे ही भाई बंधु
जो हमारे सपनों की उर्वर भूमि पर
अंगुलियों को अपने इशारों पर
नचाते हुए
उठ खड़े हुए हैं ये
जिनके पदचापों की अनुगूंज
सुनी जा सकती है
समूचे विश्व में।
सुंदर...अति सुंदर...
जवाब देंहटाएंआभार आप का....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंप्रतिभाओं की कमी नहीं - एक अवलोकन 2015 (९) यह नौवां रत्न आपको मिला। अच्छा लगा पढ़कर।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने - प्रतिभाओं की कमी नहीं । इनकी कविताओं को पढ़कर ऐसा ही लग रहा है।
जवाब देंहटाएंजो हमारे सपनों की उर्वर भूमि पर
अंगुलियों को अपने इशारों पर
नचाते हुए
उठ खड़े हुए हैं ये
जिनके पदचापों की अनुगूंज
सुनी जा सकती है
समूचे विश्व में।
एक बार फिर आप के कारण एक नए ब्लॉग से परिचय हुआ ... आभार दीदी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ..आभार..
जवाब देंहटाएंविचारोत्तेजक कविता ...भविष्य में इनसे काफी संभावनाएं हैं..
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