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गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

प्रतिभाओं की कमी नहीं - एक अवलोकन 2015 (१०)


ज़िन्दगी जब कलम पकड़ाती है 
तो उसके गहरे मायने होते हैं 
दर्द में सराबोर आदमी 
साँसों के लिए 
कलम को पतवार बना लेता है  ... 

और मैं पुरवा बन पालवाली नाव को छू लेती हूँ !


अनुपमा पाठक


बाक़ी है सफ़र...


निरुद्धेश्य
पटरियों के आस पास चलते हुए
ट्रेन पर सवार हो गयी...

पन्ने पलटती हुई चेतना
कुछ दूर तक गयी...

फिर वापसी की राह ली

कि लौटना ज़रूरी था... !

दिन के ख़ाके में कितने ही ऐसे चाहे अनचाहे मोड़ थे
जिनसे गुज़रना नियति थी...

सो पन्नों के बीच बुकमार्क लगाया
बेचैनी को ज़रा फुसलाया 

और लौट आये घर...
कि अभी लम्बी है डगर...

बिना लक्ष्य के
निकले थे भटकने...
कि जुटा सकें कुछ धैर्य
और ज़रा सी हिम्मत...

निर्धारित गंतव्य की यात्रा हेतु!

कि अभी बाक़ी है सफ़र...
अनदेखे हैं कितने ही आनेवाले पहर... !!

4 टिप्‍पणियां:

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