ज़िन्दगी है तो मौत भी है
मौत से आगे ज़िन्दगी है
है चक्र यही जीने-मरने का
ईश भी है, शैतान भी है
मानव है
दानव भी है ...
अनीता निहलानी
है ब्रह्म जहाँ होगी माया !
खिलते काँटों संग पुष्प यहाँ
है धूप जहाँ होगी छाया,
हत्यारा गर तो संत भी है
है ब्रह्म जहाँ होगी माया !
है धूप जहाँ होगी छाया,
हत्यारा गर तो संत भी है
है ब्रह्म जहाँ होगी माया !
हो तिमिर सघन, घनघोर घटा
रवि किरणें कहीं संवरती हैं,
जो आज चुनौती बन आयी
कल बदली बनी बरसती है !
रवि किरणें कहीं संवरती हैं,
जो आज चुनौती बन आयी
कल बदली बनी बरसती है !
जीवन दो का है खेल सदा
हर क्षण में दूजा मरण छिपा,
इक श्वास जो भीतर भर जाती
बाहर जाती ले रही विदा !
हर क्षण में दूजा मरण छिपा,
इक श्वास जो भीतर भर जाती
बाहर जाती ले रही विदा !
जो पार हुआ तकता दो को
वह खेल समझता है जग का,
इस ऊंच-नीच के झूले से
वह कूद उतरता खा झटका !
वह खेल समझता है जग का,
इस ऊंच-नीच के झूले से
वह कूद उतरता खा झटका !
है शुभ के भीतर छिपा अशुभ
शत्रु बन जाते मित्र घने,
न स्वीकारा जिसने सच यह
विपदा के बादल रहे तने !
शत्रु बन जाते मित्र घने,
न स्वीकारा जिसने सच यह
विपदा के बादल रहे तने !
सुख की जो बेल उगाई थी
कटु फल दुःख के लगते उस पर,
जीवन में छिपा मरण पल-पल
मन करता गर्व यहाँ किस पर !
कटु फल दुःख के लगते उस पर,
जीवन में छिपा मरण पल-पल
मन करता गर्व यहाँ किस पर !
अनीता जी की बहुत सुन्दर रचना प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंBehatreeeen
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... :)
जवाब देंहटाएं