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बुधवार, 23 दिसंबर 2015

प्रतिभाओं की कमी नहीं - एक अवलोकन 2015 (२३)


घर तेरा हो 
या मेरा 
छूट जाना है एक दिन 
हम गुम हो जायेंगे 
या तुम 
गुम हो ही जाना है !

आशीष कंधवे 


******मसीहाई आत्मा******

महानगर की
मायावी सड़कों पर
मानवता की
धायल आत्मा
तड़प रही है और
हम अपनी चमचमाती
गाड़ियों से रौंद देते हैं उसे
दिन में हज़ारों बार
लाखों बार
महामानव बन कर।
अपनी सांसो में
मौत को दबाये
पथहीन हम
पारजित हो गए हैं
स्वमं से
इसलिए
हम अपनी आत्मा की बेचैनी को
अब शब्द नहीं दे पा रहे हैं
मेरी कल्पना मजबूत नहीं
मजबूर हो गई है
हालाँकि
मेरी आखें गहराइयों को देख पा रही है
परन्तु,मुझे से लिपटी
सुनहरी धुप
एक अथाह शुन्यता का निर्माण भी कर रही है
और मैं धीरे- धीरे
हरता जा रहा हूँ
समझता जा रहा हूँ अर्थ
ऊँचे पहाड़ पर खड़े
सफल बौनों का।
अब मैं दौड़ता नहीं हूँ
धीरे- धीरे आराम से चलता हूँ
किसी थके हुए बादल की तरह
जीवन के कटानों, दर्रों ढलानों से
संभल कर निकल भी जाएँ तो भी
टकराना तो
अंततः पर्वत शिखरों से ही है !
और मिट जायेगे
बरस जायेगे
समा जायेंगे
मिल जायेंगे
सृष्टि के गुमनाम मिटटी में।
जश्न, जुलुस, झंडियाँ बंदरवार
से कोई समाज नहीं बनता
छाती में सिर्फ आग से
कोई नायक नहीं बनता
उधार के सत्य से
राम -रहमान दोनों घयल हैं
बेजुबान भूख बदजुबान नेता
दोनों दो दिशाओं में दौड़ रहे है
और मैं लाचार
अपने मसीहाई आत्मा के
कुचल जाने का इंतजार कर रहा हूँ
किसी चमचमाती सड़क पर
किसी चमचमाती गाड़ी से।

2 टिप्‍पणियां:

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