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सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

संत कबीर के आधुनिक दोहे - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

यदि संत कबीर जिन्दा होते तो आज के दौर मे उन के दोहे शायद कुछ इसी प्रकार के होते :

नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात;
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात;

पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज;
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज;

भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास;
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास;

मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश;
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश;

बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान;
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान;

पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग;
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग;

फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर;
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर;

पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप;
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप।

(व्हाट्सअप से साभार)
सादर आपका
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की कीजिये सैर

काम की जानकारी के लिए आभार 

पर उस दिन के बिना अपनी हस्ती नहीं

पर जब बोलते है तो राज़ खुलते हैं

हम किनारे किनारे चलते रहे 

किसे फ़ुर्सत मिली अपने ग़मों से

दूर लंदन मे बैठा लिखे कोई छंद 

अचला - अनन्ता - रसा - विश्वम्भरा - स्थिरा

आफ़त या राहत

यह कौन चित्रकार है

पाठक भी अत्याधुनिक ही हो  
  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

6 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक सामयिक दोहों के साथ सार्थक बुलेटिन लिंक्स प्रस्तुति हेतु आभार!

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  2. कबीर की उलटबाँसी किसी से हो पायेगी संदेह है फिर भी बहुत सुंदर प्रयास है । सुंदर बुलेटिन शिवम जी ।

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  3. दुःखद... इस परिस्थिति पर तो कबीर भी रो पड़ेंगे!!

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  4. तहे दिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने का । सुंदर लिंक्स। आज के समय पर खरे होते दोहे ।

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  5. सुंदर सूत्रों से सजा बुलेटिन..आभार !

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