कल रात हमरी बिटिया रानी का फोन आया हॉस्टल से. आता त रोजे है रात में “गुड नाइट” बोलने के लिये, लेकिन कल फोन पर उनका आवाजे सुनकर बुझा गया कि आज कुछ परेसानी है.
“डैडी! एक प्रोजेक्ट कम्प्लीट करना है!”
”तो करो, प्रॉब्लेम क्या है!”
”प्रोजेक्ट है कि किसी सोशल मीडिया में लिख रहे व्यक्ति का इण्टर्व्यू लेना.”
”हाँ, तो फिर?”
”हॉस्टेल से बाहर नहीं जा सकते और कैम्पस में किसका इण्टर्व्यू लें?”
”अपने किसी फ़ैकल्टी का इण्टर्व्यू ले लो, वो भी तो लिखते होंगे सोशल मीडिया में.”
”डैडी प्लीज़! मैंने जो आपका इण्टर्व्यू लिया था और आपने अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट किया था उसको, प्लीज़ उसका लिंक भेजिये न. मैं वही इण्टर्व्यू इंगलिश में ट्रांसलेट करके दे देती हूँ.”
हमको हँसी आ गया और हम जुट गये अपना पुराना पोस्ट का लिंक खोजने. लिंक मिल गया तो हम पहिला काम किये कि उसको पूरा पढ गये अऊर बस एहिं से लगा जैसे कोई नदी के मुँह पर रखा हुआ पत्थर हटा दिया हो. पुराना समय का केतना बात हमरे नजर के सामने से घूम गया. लिखना, पढना अऊर लड़ाई करना, फिर माफ़ी माँगना अऊर दोस्ती कर लेना. एक से एक धुरन्धर लोग था लिखने वाला. ऊ एगो कहावत है ना कि अगर कोई आपसे जलता है तो इसका मतलब है आप अच्छा काम कर रहे हैं. पुराना टाइम, कोनो अंग्रेजों के जमाने के जेलर वाला टाइम नहीं, बस चार-पाँच साल पहिले का टाइम, में सब लोग कम्पीटीसन में लिखता था, नतीजा होड़ लगा रहता था. पढने वाला को अच्छा अच्छा पोस्ट मिलता था पढने के लिये. लिखने वाले का भी एगो अलगे इस्टाइल होता था कि दूरे से बुझा जाए कि उनका लिखा हुआ है.
मगर ओही बात, रख दीजिये तो तलवार में भी जंग लग जाता है. हमको त हमारा मन बहुत्ते धिक्करता है. लोग-बाग सुभचिंतक लोग पूछते रहता है कि आप काहे लिखना बन्द कर दिये हैं. अब का बताएँ. बस बुलेटिन का मोह छोटता नहीं है अऊर एहाँ आकर लिख देते हैं त लगता है कि – ज़िन्दा हूँ मैं!!
आइये आज कुछ साल-दू साल पुराना याद समेटकर आपके लिये लाये हैं. सम्भव हुआ त इसका पार्ट – टू भी लेकर आएँगे, काहे कि ई त बस बानगी है, पिक्चर त अभी बाकिये है हमरे दोस्त!! छुट्टी मनाइये अऊर मौका मिले त देखिये पहले का पोस्ट सब!
हम लोग के समाज में आझो एगारह रुपया चाहे एक्कवन रुपिया का नेग बड़ा सुभ माना जाता है. त दुआ कीजिये कि ई पोस्ट हमरे लिये भी सुभ हो अऊर फिर से हमरा ब्लॉग भी आबाद हो जाये – काहे कि ई बुलेटिन नम्बर 1100 है भाई-बहन लोग !!
“डैडी! एक प्रोजेक्ट कम्प्लीट करना है!”
”तो करो, प्रॉब्लेम क्या है!”
”प्रोजेक्ट है कि किसी सोशल मीडिया में लिख रहे व्यक्ति का इण्टर्व्यू लेना.”
”हाँ, तो फिर?”
”हॉस्टेल से बाहर नहीं जा सकते और कैम्पस में किसका इण्टर्व्यू लें?”
”अपने किसी फ़ैकल्टी का इण्टर्व्यू ले लो, वो भी तो लिखते होंगे सोशल मीडिया में.”
”डैडी प्लीज़! मैंने जो आपका इण्टर्व्यू लिया था और आपने अपने ब्लॉग पर भी पोस्ट किया था उसको, प्लीज़ उसका लिंक भेजिये न. मैं वही इण्टर्व्यू इंगलिश में ट्रांसलेट करके दे देती हूँ.”
हमको हँसी आ गया और हम जुट गये अपना पुराना पोस्ट का लिंक खोजने. लिंक मिल गया तो हम पहिला काम किये कि उसको पूरा पढ गये अऊर बस एहिं से लगा जैसे कोई नदी के मुँह पर रखा हुआ पत्थर हटा दिया हो. पुराना समय का केतना बात हमरे नजर के सामने से घूम गया. लिखना, पढना अऊर लड़ाई करना, फिर माफ़ी माँगना अऊर दोस्ती कर लेना. एक से एक धुरन्धर लोग था लिखने वाला. ऊ एगो कहावत है ना कि अगर कोई आपसे जलता है तो इसका मतलब है आप अच्छा काम कर रहे हैं. पुराना टाइम, कोनो अंग्रेजों के जमाने के जेलर वाला टाइम नहीं, बस चार-पाँच साल पहिले का टाइम, में सब लोग कम्पीटीसन में लिखता था, नतीजा होड़ लगा रहता था. पढने वाला को अच्छा अच्छा पोस्ट मिलता था पढने के लिये. लिखने वाले का भी एगो अलगे इस्टाइल होता था कि दूरे से बुझा जाए कि उनका लिखा हुआ है.
मगर ओही बात, रख दीजिये तो तलवार में भी जंग लग जाता है. हमको त हमारा मन बहुत्ते धिक्करता है. लोग-बाग सुभचिंतक लोग पूछते रहता है कि आप काहे लिखना बन्द कर दिये हैं. अब का बताएँ. बस बुलेटिन का मोह छोटता नहीं है अऊर एहाँ आकर लिख देते हैं त लगता है कि – ज़िन्दा हूँ मैं!!
आइये आज कुछ साल-दू साल पुराना याद समेटकर आपके लिये लाये हैं. सम्भव हुआ त इसका पार्ट – टू भी लेकर आएँगे, काहे कि ई त बस बानगी है, पिक्चर त अभी बाकिये है हमरे दोस्त!! छुट्टी मनाइये अऊर मौका मिले त देखिये पहले का पोस्ट सब!
हम लोग के समाज में आझो एगारह रुपया चाहे एक्कवन रुपिया का नेग बड़ा सुभ माना जाता है. त दुआ कीजिये कि ई पोस्ट हमरे लिये भी सुभ हो अऊर फिर से हमरा ब्लॉग भी आबाद हो जाये – काहे कि ई बुलेटिन नम्बर 1100 है भाई-बहन लोग !!
बधाई । सलिल जी आप दिखे बहुत अच्छा लगा । सुंदर प्रस्तुति । ब्लाग बुलेटिन इसी तरह बढ़ते रहे 1100 से 11000 और भी आगे ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई हो बुलेटिन टीम को शगुन के ग्याराह सौ तक पहुँच जाने के लिए | शिवम् भाई आपके अथक परिश्रम और लगन का ही परिणाम है ये | हमारी ओर से ढेरों शुभकामनायें आपको और पूरी टीम को | सलिल दादा ऐसे मौकों पर चार चाँद लगा देते हैं
जवाब देंहटाएंचलिए आपका इण्टर्व्यू ऐन वक़्त पर काम आया ..बच्चा भी खुश और आप भी ....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
११०० पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई!
वाह! सलिल दा। क्या बढ़िया लिंक दिया है!!! आनंद आ गया। अपनी ये कविता तो मैं भूल चुका था। सबसे मजा आया सतीश जी की पोस्ट पर अनूप शुक्ल जी का कमेन्ट और नोंक झोंक पढ़ने में। उन दिनो कितना समय रहता था अपन के पास! अरविंद जी मोनल पंछी से मुलाक़ात ॥वाह!। अभी और पढ़ता हूँ। आप ब्लॉग पढ़वाकर मानेंगे।
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद आपका लिखा पढ़ने को मिला। बहुत अच्छा लगा। ब्लॉग बुलेटिन को बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत दिन बाद आपका लिखा पढ़ने को मिला। बहुत अच्छा लगा। ब्लॉग बुलेटिन को बधाई और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया। कमाल के लिंक हैं!
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया। कमाल के लिंक हैं!
जवाब देंहटाएंबिटिया के विश्वास पर हमको गर्व है, इस बुलेटिन की प्रतीक्षा सबको रहती है, लिंक्स सब एक से बढ़कर एक …
जवाब देंहटाएंआभार सलिल भाई!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन ऐसा मंच है जो ज़ंग लगने से बचाता है मेरी कलम की धार को! आप सबको मेरा सप्रेम नमस्कार!
जवाब देंहटाएंबधाई सलिल भई....ब्लॉग पर तो इंतजार रहेगी ही!
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और सभी पाठकों को इस कामयाबी पर ढेरों मुबारकबाद और शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंसलिल दादा और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से सभी पाठकों का हार्दिक धन्यवाद ... आप के स्नेह को अपना आधार बना हम चलते चलते आज इस मुकाम पर पहुंचे है और ऐसे ही आगे बढ़ते रहने की अभिलाषा रखते है |
ऐसे ही अपना स्नेह बनाए रखें ... सादर |
देखा ,कठिन परिस्थिति में स्वयं अपनी राह बनाना सीख रही है बिटिया - पढ़ कर बहुत अच्छा लगा .
जवाब देंहटाएंबहुत सा चुना हुआ मैटर एक साथ मिल गया - पढ़ती चली गई .इधर पढ़े-लिखने से उदासीन हो चली थी , 'पुकार' लगा कर बहुत समय से शिथिल-प्राय लेखनी को उद्वेलित कर दिया , सलिल तुम्हारा आभार !
अर्से बाद यहां आया हूं, लगता है पुराने दिन लौट आए हों...
जवाब देंहटाएंअब तो ब्लॉग ही नहीं लिख रहा, पर हां लिखता जा रहा हूं, अपनी वेबसाइट के लिए...
आखिरी पोस्ट फरवरी 2014 में लिखी थी। लेकिन बीच में फेसबुक पर कुछ लंबी पोस्टें भी ठेल आया हूं, उन्हें ब्लॉग में सजाउंगा...
सलिल भाईजी और शिवम भाईजी का आभार हृदय से पुराने दिनों से जोड़ने के लिए।
मेरे लिए तो ये बहुत बड़ा पुरस्कार है ।
जवाब देंहटाएंआभार !