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शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2015

लकीर बड़ी करनी होगी ......






पिछले दिनों या कहा जाए कि जब से ये नई सरकार सत्ता में आई है तब से शायद विरोधी विचारधारा वालों की बौखलाहट इतनी  ज्यादा  बढ़  गयी है   कि उन्हें  सकारात्मक  बातें  भी विरोध करने लायक लगती हैं | यदि आज देश का प्रधानमंत्री आम जन से सीधे संवाद करता है , उनसे सुझाव माँगता है सलाह सुनता है और ये कहता है कि आप खुद , पर्यावरण को , समाज को और देश को स्वच्छ रखें इसलिए भी क्योंकि आप स्वच्छ रहेंगे तो स्वस्थ रहेंगे | पूर्वाग्रह से ग्रस्त व्यक्ति ही इस बात में भी कोइ उल्टी बात सोच सकता है |

मुझे अक्सर अपने शिक्षक द्वारा सुनाई गयी एक बात याद आती है | वे कहा करते थे कि किसी खींची हुई लकीर को छोटा करने के दो तरीके होते हैं , पहला कि उसे मिटा कर छोटा किया जाए और दूसरी ये कि ठीक उसके बगल में उससे बड़ी लकीर खींच दी जाए तो वो लकीर स्वयमेव ही छोटी हो जायेगी |बात बहुत गहरी है इसलिए मुझे अक्सर ही याद हो आती है |

आज देश , समाज बदल रहा है और पूरा विश्व इस बात का साक्षी हो रहा है न सिर्फ इतना ही बल्कि आज जो अचानक ही एक विशवास भरा माहौल बन गया है उसने पूरे विश्व के सामने भारत को एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया है | ऐसा इसलिए भी संभव हो पाया है क्योंकि आज देश की सरकार पूर्ण बहुमत वाली सरकार है जिसे कहीं भी ये भय नहीं कि ऐसा किया तो समर्थन वापस की बरसों से चली आ रही धमकी वाली रवायत से उसे रूबरू होना पडेगा | नई सरकार निर्णय ले रही है , योजनायें बना रही है और तेज़ी से उन पर अमल कर रही है | जब भी सब कुछ ठीक ठीक होने लगता है तो नकारात्मक ताकतें अक्सर उस सकारात्मक दिशा को भ्रमित या मोड़ने की कोशिस करती हैं | और ये कोशिस हो भी रही है किन्तु ऐसे समूह को ये अब समझ जाना चाहिए कि दशकों बाद जाकर देश में एक जैसा जनमानस तैयार हुआ है तो इसके पीछे बहुत सारी वजहें होंगी | इसलिए प्रयास ये किया जाना चाहिए कि लकीर को मिटाने से बेहतर है कि बड़ी लकीर खींचने में अपनी भागीदारी निभाई जाए |

चलिए आज देखते हैं कहाँ क्या क्या लिखा गया है , मैं सिर्फ एक पंक्ति में आपको पोस्ट सूत्र दूंगा .....पोस्ट पर पहुँच कर आप स्वयं पढ़ कर पोस्ट का आनंद लें .....

बाऊ और नेबुआ की झाँखी : फौरने पहुँच कर ई पोस्ट बांची

औरत तेरी कहानी :
एक ब्लौगर की ज़ुबानी

गाय से तो पूछ लो : क्या , पोस्ट पढनी है नहीं ??

प्रतीक्षा :
न करें , फौरन ही पोस्ट पढ़ें

गुमनामी बाबा की गुमनामी सहयोगी : लीला राय ध्यान रहे , इन्हें कोइ भूलने न पाय

संघ भाजपा समन्वय बैठक : सिर्फ समन्यवय नाराजी या दबाव :
हाय क्यों कुरेदते हो जालिम , हरा कर देते हो घाव

रायटर्स डायरी : गुमे हुए शब्दों का नौस्टेलजिया
पढ़ पढ़ के मन मयूरा भया , झूमे रे जिया

देश ठीके चल रहल हौ बापू :
सब बजा रहल हौ, अपन अपन भोंपू

उम्र :
न पूछी जाय न बताई जाय

जयन्ती पर शास्त्री जी और बापू को नमन :
देशः और समाज में रहे चैन और अमन

तलाश आम आदमी की :   इस पोस्ट पर आकर ख़त्म हो जाती है



और अंत में इस खाकसार की एक पोस्ट

अजब  गजब किस्से कचहरी के : कुछ भोर के कुछ दुपहरी के


आज के लिए इतना ही ...अब सप्ताह में एक दिन आपसे मुलाक़ात होती रहेगी

9 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया चर्चा-सह-बुलेटिन प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

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  2. आपका कमेन्ट अच्छा लगा। पढ़ते हैं और भी पोस्ट।

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  3. आपकी बुलेटिन ने कुछ पोस्ट पढ़ाया ... बहुत दिनों के बाद... आभार।

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  4. बहुत दिनों बाद ही सही ... इस बुलेटिन के बहाने आप दोबारा सक्रिय हुये ... जय हो |

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  5. आप सबका बहुत बहुत आभार और शुक्रिया | जी शिवम् भाई आपने सच कहा अब प्रयास है कि जल्दी ही नियमित भी हो जाऊं

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