सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
आज भले ही दशरथ मांझी हमारे बीच न हों पर उनका यह अद्भुत कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत का काम करेगा।
सादर।।
अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर ....
आज हम आपको बताएँगे द माउंटमैन - दशरथ मांझी के बारे में।
दशरथ मांझी का जन्म 1934 में बिहार के गया जिले के पिछड़े गाँव गहलौर में एक आदिवासी जनजाति में हुआ था। गहलौर एक ऐसी जगह थीं जहाँ पानी के लिए भी लोगों को 3 किलोमीटर दूर पैदल चलना पड़ता था। उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी मांझी के लिए पीने का पानी ले जाते समय एक दुर्घटना का शिकार हो गयीं। शहर उनके गांव से 80 किलोमीटर दूर था। उस समय शहर में ही उचित स्वास्थ्य सुविधाएँ थी। इसी कारण उचित स्वास्थ्य उपचार ना मिलने पर फाल्गुनी देवी की मृत्यु हो गयी। ऐसी घटना किसी और के साथ ना हो, यही सोचकर मांझी ने पहाड़ को तोड़कर रास्ता बनाने का दृढ़ निर्णय किया। दशरथ मांझी ने गहलौर पहाड़ को अकेले दम पर चीर कर 360 फीट लंबा और 30 फीट चौड़ा रास्ता बना दिया। इसकी वजह से गया जिले की दूरी 80 किलोमीटर से घट कर महज 3 किलोमीटर हो गयी। इस पहाड़ को तोड़ने के लिए उन्होंने किसी डायनामाइट या मशीन आदि का प्रयोग नहीं किया था, बल्कि उन्होंने अपनी बकरियाँ बेचकर छन्नी - हथौड़ा और फावड़ा खरीदा। दशरथ मांझी ने सिर्फ इन्हीं औजारों से इस पहाड़ को तोड़कर रास्ता बना डाला।
इस काम को करने के लिए मांझी ने काफी दिक्कतों का सामना किया। कभी लोग उन्हें पागल कहते तो, कुछ लोग सनकी। यहां तक कि उनके घर वालों ने भी शुरू में उनका विरोध किया। लेकिन उन्होंने अपना हौसला और हिम्मत कभी नहीं छोड़ी। रात दिन बगैर किसी चीज की चिंता किये हुए उन्होंने आखिरकार इस नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिया। 22 साल ( 1960 - 82 ) के कठोर परिश्रम के बाद उनका यह सपना हकीकत में तब्दील हो गया। उन्हें हमेशा इस बात का अफसोस रहा जिस पत्नी की वजह से उन्होंने यह असंभव काम कर दिखाया वही आज उनके बनाए हुए रास्ते पर चलने के लिए जीवित नहीं है। दशरथ मांझी का निधन 18 अगस्त, 2007 को कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए दिल्ली एम्स अस्पताल में हुआ। दशरथ मांझी का अन्तिम संस्कार बिहार सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ हुआ।
इस काम को करने के लिए मांझी ने काफी दिक्कतों का सामना किया। कभी लोग उन्हें पागल कहते तो, कुछ लोग सनकी। यहां तक कि उनके घर वालों ने भी शुरू में उनका विरोध किया। लेकिन उन्होंने अपना हौसला और हिम्मत कभी नहीं छोड़ी। रात दिन बगैर किसी चीज की चिंता किये हुए उन्होंने आखिरकार इस नामुमकिन काम को मुमकिन कर दिया। 22 साल ( 1960 - 82 ) के कठोर परिश्रम के बाद उनका यह सपना हकीकत में तब्दील हो गया। उन्हें हमेशा इस बात का अफसोस रहा जिस पत्नी की वजह से उन्होंने यह असंभव काम कर दिखाया वही आज उनके बनाए हुए रास्ते पर चलने के लिए जीवित नहीं है। दशरथ मांझी का निधन 18 अगस्त, 2007 को कैंसर की बीमारी से लड़ते हुए दिल्ली एम्स अस्पताल में हुआ। दशरथ मांझी का अन्तिम संस्कार बिहार सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ हुआ।
आज भले ही दशरथ मांझी हमारे बीच न हों पर उनका यह अद्भुत कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत का काम करेगा।
सादर।।
अब चलते हैं आज कि बुलेटिन की ओर ....
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
दशरथ माँझी के इस असंभव से अद्भुत साहसिक कार्य के विषय में बहुत पहले ही पढ़ लिया और भूल भी गए थे जैसा कि अक्सर होता है ( होना नही चाहिये ) लेकिन उसी पर फिल्म बन रही है वह भी नवाजुद्दीन अभिनीत तो प्रसन्नता हुई . यह उस महान व्यक्ति को एक श्रद्धांजलि है .फिल्म की पुरजोर प्रतीक्षा है हम सबको .
जवाब देंहटाएंनमन ऐसे महापुरुष को । सुंदर प्रस्तुति सुंदर विषय ।
जवाब देंहटाएंआभार भाई।
जवाब देंहटाएंआभार भाई।
जवाब देंहटाएंदशरथ मांझी के बारे में जानकर अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबुलेटिन में लेख शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।
कार्टून लिंक को भी सम्मिलित करने के लिए आपका आभार जी.
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