जैसा देखोगे, सोचोगे,वही करोगे
प्रतिबन्ध तो ज़रूरी है …
इंसान का स्वभाव होता है कि वह अपनी गलतियों को नजरअंदाज करता है, किंतु दूसरों में बुराई ढूंढने में देर नहीं करता। दरअसल, कड़वा सच यह है कि ऐसा होने के पीछे अपने ही अंदर उन दोषों का होना भी होता है जो अक्सर हम दूसरों में खोजते रहते हैं।
दूसरों में कमी, बुराई के बारे में सोचते रहने, सुनने या देखने पर हमारा साफ मन भी बुरे भावों से भर जाता है, जिससे कहीं न कहीं हमारे बोल, व्यवहार व काम में भी बुरे बदलाव आते हैं।
बार-बार खामियां ढूंढने से किसी के प्रति मन में प्रेम का अभाव होता है और नफरत घर करने लगती है। इससे आखिरकार दोष देखने वाले की ही हानि होती है। और संबंध भी ख़त्म हो जाते हैं -
दूसरों में कमी, बुराई के बारे में सोचते रहने, सुनने या देखने पर हमारा साफ मन भी बुरे भावों से भर जाता है, जिससे कहीं न कहीं हमारे बोल, व्यवहार व काम में भी बुरे बदलाव आते हैं।
बार-बार खामियां ढूंढने से किसी के प्रति मन में प्रेम का अभाव होता है और नफरत घर करने लगती है। इससे आखिरकार दोष देखने वाले की ही हानि होती है। और संबंध भी ख़त्म हो जाते हैं -
सही बात जैसा देखते हैं वैसा सोचते हैं :)
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
सही.सुन्दर प्रस्तुति
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