प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
जब जब किसी भी के अंदर "मैं" की भावना आ जाती है तो समझ लेना उसका पतन निश्चित है।
अब उदाहरण के लिए ...
"मै"गी को ही देख लो।
सादर आपका
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"मंजिल मिल ही जायेगी , देर से ही सही ,गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं "
Manoj Kumar at डायनामिक
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
हा हा पर चिंता नहीं करिये रामदेव जी हमगी लाने वाले हैं :)
जवाब देंहटाएंसुंदर सूत्र सुंदर प्रस्तुति ।
बहुत-बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंनज़रे इनायत के लिए आभार शिवम् भाई
जवाब देंहटाएंनज़रे इनायत के लिए आभार शिवम् भाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सूत्रों से सजी बुलेटिन.
जवाब देंहटाएं'देहात' से पोस्ट शामिल करने के लिए आभार.
आभार शिवम जी . सभी अच्छी पोस्ट का संकलन
जवाब देंहटाएंभावना नहीं उसमें MSG की आत्मा "लेट"गयी थी ;-)
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी लिंक साझा किये हैं, आभार।
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लज़ीज़ खाना — Laziz Khana
जी ललचाए, रहा न जाए!!
आप सब का बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंविविधता भरे सूत्रों से सजी पोस्ट ..आभार मुझे भी शामिल करने के लिए..
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