आदरणीय ब्लॉगर मित्रगण,
सादर प्रणाम
आज की कड़ियाँ
ममता - चेतन रामकिशन "देव"
माँ - शिखा कौशक
भारत के दुर्गम तीर्थस्थल - मदन मोहन सक्सेना
रीठा-आंवला-शिकाकाई - अनीता
फिल्म समीक्षा : तनु वेड्स मनु रिटर्न्स - अजय ब्रह्मात्मज
सत्ता सच बताना - असित नाथ
दुश्मन मसीहा - सोनल रस्तोगी
प्रेम का क्रीम बिस्कुट - मिश्रा राहुल
गाँठ सभी खोल लो - अनीता
ख्याल तेरे - अपर्णा खरे
तेरे महफ़िल में - संध्या आर्य
आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा
नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू | जय श्री राम
सादर प्रणाम
जी हां तो दोस्तों...आज एक दफ़ा फिर से आपके सामने, आपके साथ, अपने विचार, अपने शब्द, अपनी सोच, अपना लहज़ा और अपनी लेखनी को लेकर साँझा करने सभी माननीय मित्रों और पाठकों के बीच वापस आ गया हूँ। आप सभी से दूर हुए साल से ज्यादा का वक्फ़ा बीत गया था, ऐसा लगता था मानो ज़िन्दगी में सुरीली तान बजाने वाले गिटार की तार टूट गई है और आसपास सभी कुछ मौन हो गया है कि तभी ऐसा एह्साह हुआ जैसे कुदरत मेहरबान हो रही है और शायद भूले-भटके ही सही ईश्वर ने अपने सबसे नालायक सुपुत्र की सुन ही ली है। यकायक, अचानक, भूले-भटके, नामालूम यूँ ही कैसे उस दिन, जब मेट्रो में बैठा था और अपनी सोच के घोड़ों पर सवार होकर कहीं घूमने जाने के पिरोग्राम को तयार कर ही रहा था कि मूबाईल फून तपाक से टुनटुनाया, जेब में वाईब्रेट हो खरखराया और उसके साथ मीठी सी रोमांटिक धुन रिंगटोन के रूप में बज उठी और ज्यों ही कॉल उठाया, कानों ने दूसरी तरफ से आती हुई बड़ी भारी-भरकम आवाज़ का सामना किया, जिसने बटन के दबते ही बिना कोई भी पल गंवाए अपने मुंह की तोप से गोला दाग़ दिया। एक सवाल जो तपाक से कानों में घुल गया वो ये था कि, "भई दोबारा शुरू हो रहा है मामला, लगाओगे क्या?" - सुनते के साथ ही 'निर्जन' सोच में पड़ गया, अमां...! क्या लगाने की बात कर रहे हैं जनाब?, दिल लगाने का ना तो अभी सही मौसम आया है ना ही फिलहाल औकात बची है इश्क़ फरमाने की और ऐसे भयंकर दरिया में डुबकी लगाने की और फिर हम तो वो हैं जो किनारे पर बैठकर भी लोटे से नाहने का इरादा रखते हैं। ससुर क़िस्मत के लैंटर अल्लाह मियां के करम से बेतरतीब लग ही चुके हैं, सबरे दुनियादारी वाले बेहिसाब वाट लगाने पर आमादा हैं ही, ऑफिस में बॉस क्लास लगा रहा है, सड़क पर कोई भी ऐरा-गैरा-नत्थू-खैरा नज़र लगा रहा है और, और भी ना जाने कौन-कौन क्या-क्या लगाने को तयार बैठा है ऐसे में हम किस खेत की मूली हैं बे जो कुछ लगायेंगे। अभी मन-मस्तिष्क के साथ मंत्रणा और विचार विमर्श चल ही रहा था, कौतुहल की दही को बिलो ही रहा था के, लस्सी तयार होने से पहले ही उधर से धमाका हुआ, "अमां मिया - बुलेटिन - बुलेटिन लगाओगे क्या ? बुलेटिन दोबारा शुरू हो रहा है - लगाओगे क्या - तुम फ्री हो क्या? समय दे पाओगे क्या?" लो भैया सब के सब सवाल धरे के धरे रह गए जिगर में, पर वो मारा पापड़ वाले को - साला तकरीबन पूरे एक बरस से ज्यादा के लंबे अरसे के इंतज़ार बाद आख़िरकार यह दिन दोबारा देखने को नसीब हुआ और ये शब्द कानो में पड़े। तो बस फिर क्या था - अँधा क्या चाहे दो आँखें - अपन तुरंत दिल में झांके और 'हाँ' बोल दिए और इस तरह आज का यह चटखारेदार, मसालेदार, खट्टा-मीठा दस्तरखान एक हसीन यादगार बनकर, यादों के ज़रिए शब्दों में ढल कर आपके सामने ख़ुशबू बिखेरता नज़र आ रहा है। दिल से दुआ करता हूँ एक दफ़ा फिर से अपना बुलेटिन उसी शोहरत की बुलंदी पर पहुंचे और अपना परचम ब्लॉग जगत में लहराये, पाठकों को थोडा सा हंसाये, गुदगुदाए, दिलों में देशभक्ति जगाये, अपने नज़रिए से वाकिफ़ कराये, शिक्षाप्रद तथा महत्त्वपूर्ण तथ्यों से परिचित कराये, अपना मक़ाम बनाये और सालों साल के लिए सभी के दिलों में बस जाए। बस यही है 'दी रिटर्न ऑफ़ ब्लॉग बुलेटिन" - एक छोटी सी कहानी - एक अदना सी ख़्वाहिश और एक दुआ जिसके साथ एक दफ़ा फिर से मैं अपनी पहली ब्लॉग बुलेटिन पोस्ट का आगाज़ कर रहा हूँ। आप सबका साथ, प्यार, दुआ और आशीर्वाद की उम्मीद रखता हूँ | आमीन....
आज की कड़ियाँ
ममता - चेतन रामकिशन "देव"
माँ - शिखा कौशक
भारत के दुर्गम तीर्थस्थल - मदन मोहन सक्सेना
रीठा-आंवला-शिकाकाई - अनीता
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सत्ता सच बताना - असित नाथ
दुश्मन मसीहा - सोनल रस्तोगी
प्रेम का क्रीम बिस्कुट - मिश्रा राहुल
गाँठ सभी खोल लो - अनीता
ख्याल तेरे - अपर्णा खरे
तेरे महफ़िल में - संध्या आर्य
आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा
नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू | जय श्री राम
वैसे भी इतनी मजबूत टीम के होते हुऐ इंजन किसके इशारे का इंतजार कर रहा था हम भी नहीं समझ पा रहे थे चलिये अब तो ट्रैन निकल चुकी है अपने साथ अपनी पटरी को लेकर गंतव्य के लिये । हमें भी काम मिल गया टिप्पणी करने का बेरोजगार हो गये थे :)
जवाब देंहटाएंजोशी सर कभी कभी सिग्नल होने पर लाइन क्लियर होने पर भी इंजन न तो खुद चल पाता है न ही बाकी बोगियों को खींच पाता है ... ऐसा ही कुछ ब्लॉग बुलेटिन के साथ हुआ|
जवाब देंहटाएंपर आप जैसे साथियों के दम पर ही दोबारा वापसी की हिम्मत हुई है ... स्नेह बनाए रखें |
सादर
जोशी जी आप की टिप्पणियां तो ईंधन है जिसके बिना इंजन ट्रेन नहीं खींच पायेगा | आपका दिल से आभार और स्वागत है | जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव
जवाब देंहटाएंबढ़िया बुलेटिन तुषार भाई ... लगे रहिए |
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई आपका मुझे ये मौका देने के लिए। दिल से आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो
हटाएंसलिल जी की अनुपस्थिती भी खलती है । पता ही नहीं है जनाब हैं कहाँ :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा ब्लाग। अपने ब्लाग पर मुझे भी थोड़ी सी जगह दीजिए।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा ब्लाग। अपने ब्लाग पर मुझे भी थोड़ी सी जगह दीजिए।
जवाब देंहटाएं...वीर तुम बढ़े चलो ...रखो धीर ...चले चलो ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन के पुनरागमन का हृदय से स्वागत है ! हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंVery nice...
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