यादों के कई कमरे हमने बनाये, सहेज-संजोया, दुनियादारी निभाते हुए कई दिनों-महीनों तक उन यादों की पुकार से दूर रहे , लेकिन अपनी ज़मीन अपनी होती है, उसका आकर्षण अद्भुत होता है, ब्लॉग्स, ब्लॉग बुलेटिन के समय में उतार-चढ़ाव आये, पर जहाँ भावनाएं हैं, शब्द हैं - उस ज़मीन की आयु लम्बी होती है, - उसी आयु की झलक ब्लॉग बुलेटिन में एक बार फिर .... लम्बा ब्रेक हुआ, आइये हम आपके लिए आपके इंतज़ार में उसी बेसब्री से फिर ज़िंदा हुए हैं , कुछ साँसें आपकी पहले की तरह मिल जाएँ तो इसका प्राकृतिक रूप, इसकी प्राकृतिक गरिमा प्राकृतिक रूप से निखर जाये ....
मैं रश्मि प्रभा ठान लेती हूँ कि प्राणप्रतिष्ठा होगी तो होगी और शब्द लेखन का यज्ञ कितना भी छोटा हो , अद्भुत, अविस्मरणीय होता है। आइये तो शब्दिक हवन में - एहसासों के प्रसाद को पढ़िए और मुग्ध हो जाइये .............................. .......... :)
गौर से शब्द- शब्द पढ़ें, और अपनी रचनाओं को अपनी नज़र में सम्मानित करें - माँ सरस्वती के चरणों में पुष्प की तरह रखकर
अपनी रचनाएँ saraswita2808@gmail.com पर मेल करें।
वैसे भी भेड़िये
को कुछ नहीं
करना होता है
समझदार भेड़िये का
एक इशारा ही
बहुत होता है
को कुछ नहीं
करना होता है
समझदार भेड़िये का
एक इशारा ही
बहुत होता है
जब मन अव्यवस्थित हो... तो आसपास सब बिखरी वस्तुओं को समेटना चाहिए... धीरे धीरे यूँ शायद मन भी व्यवस्थित हो जाये... बस सहेजते व्यवस्थित करते घर को बीता पूरा समय ब्राह्म मुहूर्त से ही... क्या व्यवस्थित हुआ ये तो पता नहीं पर ये कुछ कतरनें मिलीं यहाँ वहां चुटके पूर्जे में आते जाते कभी की लिखी हुई तो सहेज लेते हैं यहाँ...
आदर्शवाद की परछाई में
अपना मौलिक स्वाद ना खो
सामाजिक हल्ले में तू
मन से अपने संवाद ना खो
कुछ शून्य
नही दिए तुमनें उधार
दहाई बननें के लिए
बिगड़ी तो कब क्या बनेगी खुदा जाने
इक पल फिर भी मेरा संवर जाता है।
एक लम्बे अर्से के बाद ब्लौग बुलेटिन पर हलचल हुई । देखकर आनन्द आ गया । 'उलूक' का आभार भी उसके सूत्र 'उलूक टाइम्स: बकरी और शेर भेड़िया और भेड़' को भी याद किया गया ।
जवाब देंहटाएंकारवाँ चलता रहे
धूल उड़ती दिखे
चाँद भी निकले
रात को ही सही
सूरज भी दिन में
दिखे बादलों
की ओट में सही
यही कामना है ।
कृपया मेरे चिट्ठे पर भी पधारे और अपने विचार व्यक्त करें.
जवाब देंहटाएंhttp://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://kahaniyadilse.blogspot.in
आह ! बहुत दिनों के बाद .... सुंदर लिंक्स का संग्रह ...
जवाब देंहटाएंआभार!
जवाब देंहटाएंआप जैसी प्रेरणा ही तो हम जैसों का संबल है रश्मि जी...!
चलता रहे शब्द लेखन का यज्ञ!
सादर!
blog अपनी जमीन अपना घर जैसा.
जवाब देंहटाएंएक यज्ञ शब्दों का बाहर
विचारों का भीतर!
बहुत बढ़िया ...सादर स्वागत है दोबारा से ..सुन्दर लिंक्स से सजा हुआ बुलेटिन
जवाब देंहटाएंआप के सहारे ही हम सब भी इस सफ़र मे साथ चलेंगे |
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